________________
यति ऋषभ को यहाँ तक आ कर भी परितोष नहीं है । वे और ज़रा ऊपर की ओर निहारने लगे। तो वहाँ जल-स्फटिक की तरह निर्मल 'सिद्ध' नामा स्तूप हैं। जिनमें दर्पणों की आभा जैसे सिद्धों के स्वरूप दिखायी पड़ते हैं। उसके बाद सूर्यकान्त मणियों से जगमगाते 'भव्यकट' नामा स्तूप हैं, जिनकी प्रभा इतनी प्रखर होती है कि अभव्य जन उसकी ओर निहार भी नहीं सकता।
.. 'आर्य ऋषभ को एक विचित्र आकर्षण का खिंचाव महसूस हुआ । वे बरबस आगे बढ़ गये । · · ·ओह, ये 'प्रमोह' नामा स्तूप हैं । मोह की शुद्ध कस्तूरी से ये निर्मित हैं । मोह यहाँ पुंजीभूत और समाधिस्थ है । इसी से वह स्वयं को अतिक्रान्त कर गया है । मोही जीव इन्हें देखते ही अपने आदिम घर लौट आने का सुख अनुभव करते हैं । और वे तत्काल निर्मोह हो जाते हैं। सर्वत्र भटक कर घर लौट आना ही क्या कम मुक्तिदायक है । मोह स्वयं अपने ही राज्य में, यहाँ मोक्ष हो गया है । अद्भुत अनैकान्तिक है यह साक्षात्कार ! और यति ऋषभ गहरे आश्वासन से भर आये हैं। . . .
और फिर ये 'प्रबोध' नामा स्तूप हैं। आकाश के प्याले में जैसे बोध की सुरा छलक रही है। उसमें तमाम पदार्थ-जगत अपनी शुद्ध तन्मात्राओं में आँखों आगे खुलता चला जाता है । तब राग क्षीण होने से भीतर रस के समुद्र उछलने लगते हैं । आँखों में तत्त्व का चन्द्रोदय छाया रहता है।
और हठात् आर्य ऋषभ एक आकस्मिक आलोक' से चौंक उठे। · ओह, यह नवम और अन्तिम प्राकार है समवसरण का । इसकी प्रभा बड़ी शीतल और सुखकारी है। जैसे आकाश में नीले-मोतिया बादलों के झरोखे कटे हुए हों। अतीन्द्रिक के राज्य का यह ऐन्द्रिक सीमान्त है । यहाँ चिति-शक्ति अपने सूक्ष्मतम रूप-सौन्दर्यों में व्यक्त हो रही है । विराट् नीलिमा में केशर के फूल लहक रहे हैं। यह जैसे किसी परात्पर चन्द्रमा का प्रभामण्डल है। ___ योगी ऋषभ पर अकस्मात् गहरी ध्यान-तंद्रा छा गयी। और उन्हें अपने मूलाधार से आज्ञा-चक्र के बीच की सुषुम्ना में एक बिजली की लहर खेलती अनुभव हुई । ओ, यह कोई प्रबल ऊर्जा-तरंग है ! यह किसी चरम निर्माण की महेच्छा है, जो अन्तरिक्षों के आरपार कौंध रही है। सारे लोकाकाश पर एक ही अभीप्सा छायी है : कोई ऐसा चरम निर्माण रूपाकार में हो, जिसमें जड़ पुद्गल भी अपने सूक्ष्मतम ज्योतिर्मय परमाणुओं में विघटित हो जाए। वह चैतन्य की अखण्ड प्रभा में निर्वाण पा जाय । जिसके सारे ही रूपों, आकारों, बिम्बों, और शरीरों में द्रव्य महीन रोशनी के बादलों-सा नर्म हो जाए । नम्य हो जाए।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org