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और ऋषभ मुनि ने अचानक ही अपने को अब विजयांगन के नील- बिल्लौरी प्रसार में खड़े पाया । इसके कोनों पर एक-एक योजन ऊँचे चार लोक- स्तूप खड़े हैं। वे मूल भाग में वेत्रासन के आकार हैं, मध्य-भाग में झल्लरी के समान हैं, ऊपर मृदंग-तुल्य हैं । और इनके स्फटिक - शिखर आकाश में अधर लहराते सरोवरों जैसे निर्मल, फिर भी रंगीन हैं । स्तूपों की पारदर्श दीवारों में से नाना लोक-रचनाएँ, हर क्षण नवीन होती हुई झलकती रहती हैं । इनके आगे मध्य-लोकों के स्तूप हैं । वे माटी, जल और हरियाली की आभा वाले हैं । उनके वातायनों पर जैसे नदियों के पर्दे लहराते हैं। और उनकी लहरों में मध्यलोक की कालिक जीवन-चर्या का दर्शन होता रहता है ।
और आगे मंदराचल के समान देदीप्यमान मन्दर नाम के स्तूप हैं । वे सत्ता के मत् के साक्षी हैं । वे निश्चल चेतना - स्थिति के ध्रुव हैं । इन स्तूपों की पालिका में सहस्रकूट चैत्यालय हैं । जिनमें उत्कीर्ण हज़ारों जिन-मुद्राएँ. निस्पन्द दृष्टि से निखिल को निहार रही हैं ।
और ऋषभ आगे बढ़े तो 'कल्पवास' स्तूपों का जगत सामने आया । इनमें कल्प स्वर्गों की सारी रचनाएँ, चंचल चित्रपट की तरह फेरी देती रहती हैं । निपट भोग का यह संसार, कितना संकीर्ण और उबाऊ लगता है। इसमें संघर्ष की टक्कर नहीं, इसी से प्रतिरोध नहीं । इसी से नवीन की खोज का पुरुषार्थ नहीं । 'और फिर ये 'ग्रैवेयक स्तूप' हैं । यह नौ ग्रैवेयक के उच्चात्मा देवों का राज्य है । इनकी सारी वासनाएँ अन्तर्मुखी हो गयी हैं । ये आत्मसम्भोग में समर्थ हैं । लेकिन इस ऊँचाई से भी ये गिर कर फिर चौरासी लाख योनियों में भटक सकते हैं। योगी ऋषभ सहम आये । ऐं ऐसा भी हो सकता है ? और उनकी यौगिक भूमिका में भूकम्प आ गया । और वे आगे बढ़ गये ।
आगे अनुदिश और अनुत्तर स्तूपों का अति सूक्ष्म वायवीय प्रदेश है । इन विमानों के वासी देवात्मा शरीरी होते हुए भी अशरीरी और अस्पृश्य जैसे लगते हैं । मानों अपनी परम काम-चेतना के अनुरूप नित नव्य शरीर धारण करते रहते हैं । देह से उत्तीर्ण अनिर्भर रति-सुख की निरन्तर तरंग - केलि ही मानो इनका अस्तित्व है ।
उसके आगे ‘सर्वार्थसिद्धि' नामक स्तूपों की श्रेणियाँ हैं । इन देवों के सर्व अर्थ सिद्ध हो चुके हैं। आप्तकाम होने से इनका देहबन्ध जैसे स्थिर और अमर हो गया है। ये चाहें तो एक ही शरीर में अनन्त काल जी सकते हैं । पर इनका देहभाव और राग समाप्त हो चुका है, इसी से ये विदेह शान्तियों में ही विचरते हैं ।
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