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________________ २९८ था, युद्ध से उसका मन पराङमुख था । जन-त्राण के सिवाय अन्य कोई युद्ध उसे मान्य न था। सो पराक्रांत और दुर्जेय चण्डप्रद्योत के आक्रमण का समाचार सुन कर, शतानीक रात-दिन चिंता में घुलने लगा। उससे उसे तीव्र अतिसार का रोग हो गया । और ना कुछ समय में ही वह देह-त्याग कर गया। सारे वत्स देश में हाहाकार मच गया। परम धर्मात्मा राजा के इस आकस्मिक निधन से अनाथ हो गई प्रजा ने, जब चण्डप्रद्योत की दर्दान्त वाहिनियों को कौशाम्बी पर चढ़ आते देखा, तो उनकी धरतियाँ हिल उठीं।.. यों अकस्मात् कर्कापात से छत्रभंग होने पर महादेवी मृगावती, एक दिन-रात तो अपार शोक-समुद्र में गोते खाती रहीं। पर उस महान क्षत्राणी के सामने कठोर कर्त्तव्य खड़ा था। विशाल वत्स देश की प्रजा अपनी रक्षा के लिये महारानी को पुकार रही थी। उधर उनका पुत्र उदयन निपट किशोर था । तिस पर वह बाला-राजा कम उत्पाती नहीं था । घर में उसका पैर टिकता नहीं था । सुकुमार बाल्य वय से ही वह वीणा बजाने में कुशल हो गया था। उसकी संगीत-वासना अनिर्वार थी । वह अपने परिकर के संग विन्ध्यारण्य के हस्ति-वनों में वीणावादन करता हुआ, दुर्दान्त हस्तियों को वशीभूत कर उनसे खेलने में मगन रहता था। उनकी पीठों पर सवार हो कर वह दुर्भेद्य और जनहीन अरण्यों में जाने क्या खोजता फिरता था। जब यह दुर्घटना घटित हुई, तब भी उदयन कुमार घर पर नहीं था। राज्य और चारदीवारी के बन्द सुख-भोगों में वह विरम नहीं पाता था। उसे राज्य में रंच भी रुचि नहीं थी । अपने स्वप्न-राज्य में ही वह उन्मन और तल्लीन विचरता रहता था । किशोर उदयन उस अल्पायु में ही दन्तकथाओं का नायक बन गया था। उधर नन्द्यावर्त के राजमहल में उसके मौसेरे भाई कुमार वर्द्धमान का भी यही हाल था । · · · संकट को सर पर मंडलता देख महारानी मगावती ने शोक त्याग दिया, और सन्नद्ध सावधान हो गईं। शाब्दिक सतीत्व की मर्यादा उन्हें इस क्षण व्यर्थ लगी। उनका शील तेजशिखा बन कर प्रकट हुआ । कुशल कर्म-योगिनी की तरह उन्होंने संकट के सम्मुख कूटनीति का अवलम्बन किया। महामंत्री यौगन्धरायण से परामर्श करके, महादेवी ने चण्डप्रद्योत के पास लिखित सन्देश भिजवाया कि : 'मेरे पति महाराज शतानीक तो स्वर्गस्थ हो गये। अब तो मैं आपकी ही शरणागता हूँ। पर मेरा पुत्र उदयन अभी अवयस्क बालक है । इसी से यदि उसे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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