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________________ २९७ 'चित्रकार पुष्पसेन, धरती पर और स्वर्ग में भी ऐसा सौन्दर्य आज तक देखासुना न गया। पृथ्वी पर कहाँ बसी है यह स्त्री ? यदि वह कहीं शरीर में है, तो उसका एक मात्र अधिकारी चण्डप्रद्योत है !' चित्रकार अपने संकल्प की सिद्धि को सम्मुख पा, हर्षित फिर भी व्यथित हो कर बोला : __ 'हे राजन, चित्रपट को यह सुन्दरी कौशाम्बीपति. महाराज शतानीक की पट्ट-महिषी महारानी मृगादेवी है। पूर्ण मृगांक जैसे मुखवाली यह मृगाक्षी किन्नरों और गन्धर्वो को भी मोह-मूछित कर सकती है। उसके रूप को आँकने में विश्वकर्मा भी समर्थ नहीं । मैंने तो किंचित् झलक मात्र ही आँकी है । बाकी तो वह रूप, वचन और अंकन से परे है !' राजा चुप और समाहित हो गया। पुष्पदंत को पर्याप्त पुरस्कार दे कर बिदा कर दिया । • अगले ही दिन अवन्तीनाथ ने अपने एक विश्वस्त दूत को यह सन्देश ले कर कौशाम्बीपति के पास भेजा कि-'मेरे होते मृगावती जैसी सुन्दरी का भोक्ता होने की स्पर्धा कोई अन्य नरपति कैसे कर सकता है ? मुझे पता लग गया है, कि वह कई जन्मों की मेरी रानी है। उसे मुझे लौटा दो, नहीं तो कौशाम्बी को भूसात् करके अपने बाहुबल से मैं अपने स्त्री-रत्न पर अधिकार कर लूंगा !' ___ शतानीक यह सन्देश सुन कर क्रोध से वह्निमान हो उठा। उसने उज्जयिनी के राजदूत वज्रजंघ से कहा : 'ओ रे अधम दूत, ऐसे अनाचार की बात कहते तेरी जीभ क्यों न कट पड़ी। दूत-मर्यादा को मान्य कर तेरा वध न करूंगा, पर अपने राजा से कह देना कि जो नरपति पर-पत्नी पर ऐसी पाप-दृष्टि कर सकता है, वह अपनी अधीनस्थ प्रजा पर कैसा अत्याचार करता होगा ! कह देना प्रद्योत से, कि स्वयम् मेरे सामने आये अपना बाहुबल ले कर, तो उसके चण्डत्व को धूल चटवा दूं, और उसकी अवन्ती को मृगावती के चरणों में डाल दूं।' __राजदूत वज्रजंघ उलटे पैरों उज्जयिनी लौट आया। उसके मुख से शतानीक के ये वचन सुन कर, चण्डप्रद्योत का रक्त खौल उठा । विशाल सैन्य ले कर वह दिशाओं को आच्छादित करता हुआ, मर्यादाहीन समुद्र की तरह कौशाम्बी की राह पर चल पड़ा। उस काल, उस समय के तमाम महाराज्यों के राजेश्वरों के बीच सदा ही प्रबल बैर-जहर, कूट-कलह, मारकाट चलती रहती थी। शतानीक सौम्य और शांतिप्रिय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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