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________________ वासना के सुलगते जंगल कौशाम्बी की विधवा महारानी मृगावती को लगा, कि वातावरण में आज एक विचित्र कम्पन है । सारा आकाश-वातास जैसे एकाएक सम्वेदना से भर उठा है। पत्ती-पत्ती कितनी जीवन्त और प्रत्यक्ष हो उठी है। उन्हें रोमांचक सिहरन के साथ नये सिरे से स्मरण हो रहा है, कि वे तीर्थकर महावीर की सबसे बड़ी मौसी हैं । वे उस वत्सराज उदयन की माँ हैं. जिसके पराक्रम और प्रेम की कथाएं सुदूर के अज्ञात समुद्र-तटों तक व्याप्त हैं । अभी कल ही की तो बात है, जब महाश्रमण वर्द्धमान, अपनी तपोसाधना के अन्तिम दिनों में कौशाम्बी आये थे। एक बेड़ियों में बन्दिनी राजकुमारी दासी के ही हाथ का आहार लेने का कठोर अभिग्रह कर, दो महीने कौशाम्बी के रास्तों और गलियों में उपासे भटकते रहे थे । अपने भावी जगतपति बेटे की ऐसी दारुण तपस्या से मृगावती पसीज उठी थीं। महारानी यह तो न समझ सकी थी, कि वह दासत्व का मलोच्छेद करने निकला है। पर यह ज़रूर समझ गयी थीं, कि साक्षात् भगवान कौशाम्बी की पाप में डूबी अन्धी गलियों में भटक रहे हैं। • यह निरा मनुष्य हो कर भी, उससे ऊपर है । और उनके आनन्दाश्चर्य का पार नहीं था यह देख कर, कि यह प्रभु उन्हीं का रक्त है। ___ और बन्दिनी दासी के रूप में मिली थी, स्वयम् चन्दना । उनकी दुलारी छोटी बहन । उसने स्वयम् दासत्व ग्रहण कर, दासत्व के स्थापक अपने परम्परागत राजवंशी रक्त के इतिहास-व्यापी अपराध का प्रायश्चित किया था । और उस चन्दना की बेड़ियाँ तोड़ कर प्रभु ने सदियों से चली आयी दासत्व की साँकल को तोड़ दिया था । उसके बाद चन्दना, मौसी मृगावती के पास ही कौशाम्बी के राजमहल में रही । प्रभु की पुकार के लिये विकल उसकी प्रतीक्षाकुल रातों को मृगावती ने देखा था। एक दिन बुलावा आया, और वह चन्दना भी चली गयी । लेकिन मृगावती का कौन है ? उनका बेटा वत्सराज उदयन तो मुरा, सुन्दरी और संगीत में खोया है । उसे अपनी प्रणय-क्रीड़ा. और दुर्दान्त भ्रमणों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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