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प्रभु-द्रोही की मुक्ति अवश्यम्भावी
जमालि अब मगध, विदेह. काशी. कौशल, तथा वत्सदेश के जनपदों में, अपने संघ के साथ स्वच्छन्द विहार करने लगा। प्रियदर्शना भी महावीर को छोड़ कर उसके पीछे चली आई थी । इसमें वह भगवान पर अपनी विजय अनुभव करता था । और इस कारण वह उल्लसित हो कर और भी अधिक प्रमत्त और उद्धत हो गया था।
कुछ समय में ही उसने अपनी एक दुनिया खड़ी कर ली। पूर्वांचल के सारे ही जनपदों में लोकवायका प्रचारित हो गई, कि आचार्य जमालि सर्वज्ञ और अर्हन्त हो कर महावीर के समकक्षी हो गये हैं। स्वयं जमालि के प्रवचनों में यह प्रतिध्वनित होता था कि महावीर तो केवल एक परम्परागत तीर्थंकर हैं । किंतु वह तमाम प्राचीन परम्पराओं को तोड़ कर, अपनी स्वतंत्र प्रज्ञा के बल, प्रतितीर्थंकर हो गया है। सच्चा प्रतिवादी महावीर नहीं, जमालि है। उसी ने आज तक के सारे वादों का भंजन किया है। और प्रतिवाद द्वारा एक नूतन और मौलिक वाद को उपलब्ध किया है ।
___ वस्तुतः श्री भगवान ही समकालीन विश्व की सब से बड़ी प्रतिवादी शक्ति के रूप में सर्वत्र प्रतिष्ठित हो चुके थे। क्योंकि उनका दर्शन किसी प्रतिक्रिया में से नहीं आया था। उसमें किसी पूर्व वादी के खण्डन या मण्डन का आग्रह नहीं था । वह उनके आत्म की शुद्ध चिक्रिया में से आया था। उन्होंने अपने कैवल्य में विश्व और वस्तु-तत्त्व का सीधा और प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया था। वे ईहा, अवाय या धारणा नहीं बोलते थे । वस्तु का प्रकृत स्वरूप स्वयं उनकी वाणी में बोलता था । मानो कि वे नहीं बोलते थे, वस्तु स्वयं उनमें से बोलती थी। भगवान तर्क से किसी सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं करते थे । वे वस्तु के अनैकान्तिक स्वरूप को अपने एकाग्र केवलज्ञान में जैसा साक्षात् करते थे, उसी का अविकल्प कथन करते थे। वे सिद्धांतकार नहीं, साक्षात्कार थे।
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