SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० 'छोड़ने और लेने की सत्ता तो उस त्रिलोकीनाथ की है, मेरी कहाँ, अनवद्या। हो सका तो मैं भी उस सत्ता को प्राप्त करना चाहूँगा। उसके बिना अस्तित्त्व शक्य नहीं ।' 'मेरे लिये क्या आज्ञा है, मेरे प्रभु !' 'कल सवेरे अर्हन्त महावीर के समवसरण में तुम्हें पहुँचाने चलूंगा । बड़ी भोर ही हम प्रस्थान कर जायेंगे।' 'जो आज्ञा, स्वामी !' और प्रियदर्शना के हृदय में आनन्द के सिन्धु घहराने लगे। और उसी रात जमालि ने अपने सभागार में, अपने चुनिन्दा पाँच सौ सामन्तों और सैनिकों को बुला कर यों सम्बोधन किया : 'लिच्छवि वीरो, लिच्छवि महावीर अपने तपोबल और आत्मबल से त्रिलोकी के सम्राट हो कर हमारे आँगन में आये हैं। मगधेश्वर श्रेणिक तक उनका शरणागत हो गया। उसका चक्रवर्तित्व धूल चाट रहा है। ससागरा पृथ्वी पर अब मागध नहीं, लिच्छवि राज्य करेंगे। ___ 'लेकिन सुनो मेरे साथियों, आश्चर्य नहीं कि शरणागत हो कर भी श्रेणिक राजगृही के गर्भगृहों में महावीर के विरुद्ध षड्यंत्र कर रहा हो । और अजात शत्रु कूणीक की तलवार अब भी वैशाली पर तुल रही है। . . . 'सावधान लिच्छवियो, इन ख़तरों से हमें जूझना होगा । अब तक मगध-वैशाली के युद्धों में हमने साफ़ देख लिया, कि पशुबल को पशुबल से नहीं हराया जा सकता । तपोबल और आत्मबल से ही उसका मूलोच्छेद किया जा सकता है। महावीर ने उसे प्रमाणित कर दिया । 'तो मित्रो, आज की सन्ध्या में, मेरा यही अन्तिम निर्णय है कि हम कल प्रातः तीर्थंकर महावीर की शरण में जा कर उनके श्रमण हो जायें । और अपनी तपस्या की अग्नि में मगध को भस्म कर के सारी पृथ्वी पर राज्य करें। प्रतिश्रुत हुए मेरे क्षत्रियो ?' और उत्तेजना के आवेश में पाँच सौ लिच्छवियों ने एक स्वर में स्वीकारा : 'हम प्रतिश्रुत हैं, देव । राजाज्ञा शिरोधार्य है, महाराजकुमार। लोक देखे, कि श्रमण बल कैसे सैन्यबल को धूलिसात् कर सकता है । त्रिलोक छत्रपति महावीर जयवन्त हों। वैशाली गणतंत्र अमर हो । महाराजकुमार जमालि जयवन्त हों!' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy