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________________ २६९ 'आज देख रहा हूँ, कि इन्द्राणियाँ उस पर चँवर ढालती हैं। तीनों लोक उसके सर पर तीन छत्र बन कर लटक गये हैं । अप्सराओं के लावण्य उसकी पगधूलि होने को तरसते हैं । चक्रवर्ती सम्राट उसके एक कटाक्ष के भिखारी हैं। हज़ारों निर्ग्रन्थ श्रमणों के साथ जब वह आर्यावर्त के जनपदों में विहार करता है, तो रंगराग से गूंजते अन्तः पुरों की वधुएँ और कुमारियाँ छज्जों-झरोखों से उस पर फूल बरसाती हैं, अपने अमूल्य रत्नहार उस पर निछावर करती हैं। लक्ष-लक्ष नर-नारी उसके गतिमान चरणों में साष्टांग प्रणिपात करते हुए बिछ जाते हैं। _ . . ' और विचित्र है यह महावीर, इन सब के ऊपर हो कर तैरता-सा निकल जाता है। आँख उठा कर देखता तक नहीं, फिर भी हर किसी को लगता है, कि वह उससे आलिंगित और कृतार्थ हो रहा है । ऐसी सत्ता के सामने होते, अपनी सत्ता को कहाँ रक्खू ? कैसे भोगू, कुछ भी तो अपना नहीं लग रहा, प्रियदर्शना !' 'मैं भी नहीं, देवता ?' 'तुम मेरी कहाँ ? कभी थी नहीं, हुई नहीं। क्या मुझ से छुपा है कि तुम पहले अपने मान बापू की बेटी रही, फिर मेरी परिणीता भार्या । · · · तेरी निगाह सदा उस अवधूत के अलक्ष्य रास्तों पर बिछी रही। और अब तो तेरा पिता जगदीश्वर हो कर आया है, तेरे ही आँगन में । मैं कौन हो सकता हूँ तेरा अब, प्रियदर्शना ?' प्रियदर्शना कॉप-काँप आयी । आँचल में मुंह ढाँप कर सिसक उठी । भर आते कण्ठ से बोली: 'मझे तो उन्होंने कभी बेटी कह कर पुकारा तक नहीं। हाँ, उनकी दृष्टि में अचानक ध्वनित लगता-'बेटी !' लेकिन मेरी बिदाई के समय वे कहाँ थे ? मैं कहीं जाऊँ, उन्हें क्या पड़ी थी ? और अब तो वे त्रिलोक-पिता हो गये, मुझ अभागिनी को पहचानेंगे भी नहीं । · · तुम्हारे सिवाय मेरा कोई नहीं, मेरे प्राण !' 'मैं खुद ही अपना न रहा अब, प्रियदर्शना। तो तुम्हारा कौन, क्या हो सकता है ? ...' प्रियदर्शना एक बहुत भीतरी चीख़ के साथ रो पड़ी। और बिसूरने लगी। 'अवनद्या, रोती क्यों हो ? तुम्हारे पिता तुम्हें लेने आये हैं । चलो, तुम्हें उनके हाथ सोंप आऊँ । और उऋण हो जाऊँ।' ‘और तुम मुझे छोड़ जाओगे ?' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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