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दिखाई पड़ा | उसके जन्मान्तर जाग उठे । उसकी रातें निद्राहीन हो गयीं । उसने निश्चय कर लिया कि उसके होते प्रियदर्शना को और कोई नहीं ब्याह सकता । वह उसके स्वप्न की रूपसी है, उसकी आदिकाल की नियोगिनी नारी है ।
उस ज़माने के क्षत्रियों में यह टेक थी कि मामा की बेटी को भांजा न ब्याहे तो कौन ब्याहे ? सो जमालि उस टेक की कोटि पकड़ कर प्रियदर्शना को ब्याह लाया ।
भगवान जब क्षत्रिय-कुण्डपुर के राजमहालय में कुमार काल बिता रहे थे, तभी यह घटना घटी थी । प्रभु राजकुमार के जीवन में तब भी व्यक्तिगत या निजी सम्बन्ध जैसी कोई चीज़ बन ही न सकी थी। लेकिन न जाने किस पूर्व ऋणानुबन्ध से, प्रियदर्शना पर युवा भगवान की वत्सल दृष्टि हो गयी थी । काश्यपों के सारे राजमहालय में केवल एक इसी लड़की पर प्रभु के मन में एक विचित्र निजत्व का भाव था । वे उसे 'अनवद्या' या 'आद्या' कह कर पुकारा करते थे । इसी से सारे परिवार में उसके दो नाम चलते थे- प्रियदर्शना और अनवद्या । और सब को ईर्ष्या होती थी, कि केवल उसे ही प्रभु ने नाम दे कर पुकारा है ।
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• विवाह के बाद बिदाई के समय, परिजनों के बीच जब अनवद्या को महावीर कहीं न दिखाई पड़े, तो वह कितनी - कितनी टूट कर रोई थी । मन ही मन उसने कहा था : 'तुम मनुष्य हो कि पत्थर हो, वर्द्धमान ? पिता की तरह अपना कर भी, बेटी को तुमने हवा पर फेंक दिया । ... मैं सदा के लिये तुम्हारे द्वार से बिदा ले रही हूँ। और तुम्हारे दर्शन तक दुर्लभ हैं -!' कितनी पीड़ा लेकर वह पीहर से ससुराल गई थी ।
उसके बाद वह जब भी कभी पीहर में आती, तो महावीर के सामने पड़ने से सदा बचती थी । दूर से उनकी झलक देख कर एकान्त में रो पड़ती और मन ही मन पुकार उठती : 'मान बापू, तुम कब किसी के हुए हो ? हो नहीं सकते । '
और फिर गृह-त्याग के उस उत्सवी प्रभात में, जब सारे लिच्छवि कुल प्रभु को बिदा देने आये थे, तब अकेली प्रियदर्शना ही नहीं आयी थी । वह अपने कक्ष में बन्द होकर रोती पड़ी रही थी । और उसे हठात् लगा था, जैसे किसी ने पुकारा हो : 'बेटी अनवद्या, देखो मैं हूँ न !' कितनी परिचित आवाज़ थी !
कुमार जमालि आचूड़ विलास में डूबा रहता था । अपने रत्निम कक्षों के ऐश्वर्य, अपनी रमणियों के लावण्य और यौवन तथा अपने उद्यान के क्रीड़ा-कुंजों से बाहर वह झाँकता तक नहीं था । वर्द्धमान के विरागी और यायावर व्यक्तित्व से उसे चिढ़ थी । अनवद्या के परम प्रेमास्पद इस धर्मपिता से उसके मन में एक गुप्त ईर्ष्या भी थी । • इसी से उनके महाभिनिष्क्रमण पर वह अट्टहास
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