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________________ अनवद्या प्रियदर्शना क्षत्रिय कुण्डपुर के उपान्त में महाराजकुमार जमालि का आलीशान महल और उद्यान था। वह एक लिच्छवि अष्टकुलक वंश के राजवी का इकलौता बेटा था। आसपास के कई सन्निवेशों का वह भावी स्वत्वाधिकारी था। महावीर की चचेरी बहन सुदर्शना का पुत्र होने के नाते, वह उनका भांजा था। जमालि स्वभाव से ही स्वप्नशील था। उसका मन सदा कल्पना के आकाशों में उड़ता रहता था। उसकी आँखों में स्वयम्भू-रमण समुद्र के तटवर्ती देव-चैत्यों के सपने बसे थे। उद्दाम काम को तरंग पर खेलता उसका चित्त ईशान स्वर्ग की उर्वशियों के साथ कोड़ा करता रहता था। बड़ी विदग्ध और वेधक थी उसको वासना । अनेक राजपुत्रियों से विवाह करके भी उसका मन विराम नहीं पा रहा था । वह एक ऐसा चेहरा खोज रहा था, जिसमें उसके सारे सौन्दर्यस्वप्न एक साथ रूपायित हुए हों। महावीर के चचेरे भाई जयवर्द्धन की बेटी प्रियदर्शना अपनी चितवन में एक अनोखा दरद ले कर जन्मी थी। ऐसी विदग्ध और चुटीली थी उसकी भंगिमा, कि मानो सारी सृष्टि का विषाद संयुत हो कर उसके अंग-अंग में अंगड़ाई लेता रहता था। एक उत्सवी सन्ध्या में जमालि को खोजभरी दृष्टि अचानक प्रियदर्शना पर जा अटकी । वह आमोद-प्रमोद में डूबे स्त्री-पुरुषों के समुदाय से छिटक कर, राजोद्यान की एक छोरवर्ती संगमर्मरी बारादरी के खम्भे पर सर ढलकाये एकाको खड़ी थी। सुरेख उजली कोहनी के कोण पर ईषत् बंकिम सा ठहरा था उसका माथा । प्रथम आषाढ़ के उमड़ते मेघों जैसा केशभार। - यह प्रियदर्शना उत्सव से पलायन कर यहाँ क्या खोजने आयी है ? यह कितनी अकेली और बिछुड़ी-सी लगती है। · · · प्रियदर्शना के उस उदास सौन्दर्य को देख कर, जमालि आपे में न रह सका । अपनी ममेरी बहन की उन दर्दीली आँखों में उसे सारा जगत डूबता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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