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________________ २४९ ‘परम न्यायाधीश और परम न्याय-विधान का साक्षात्कार हुआ, नाथ ! मैं निःशंक हई । मैं अपने से निकल आयी । मझे श्रीचरणों की अनुगामिनी बना लें। सुलसा को भगवती दीक्षा प्रदान करें, स्वामिन् ।' 'अनुगामिनी नहीं, महावीर के श्राविका-संघ की अग्रगामिनी हो कर रहोगी। गृहिणी रह कर ही, लोकमाता के आसन पर बिराजेगी, महासती सुलसा। उसकी आत्माहुति के समक्ष अनेक श्रमण-श्रमणियों के तप-संयम और महाव्रत फीके पड़ जायेंगे । श्रमणी हुए बिना ही वह एक दिन अपने मातृतेज से सिद्धालय के सिद्धों तक को अपनी अनुकम्पा से रोमांचित कर देगी !' 'अब लौट कर कहीं जाना मेरे वश का नहीं, स्वामी ! श्रीचरणों में ही रह जाने दो।' 'मेरे सखा नाग रथिक की देख-भाल कौन करेगा, माँ ? पीड़ित लोक-जनों को अपनी अनुकम्पा से कौन आश्वस्त और दुःख-मुक्त करेगा? . . . और उधर देखो, वे श्रेणिक और चेलना तुम्हारी छातो में आश्वासन पाना चाहते हैं । उनकी ओर नहीं देखोगी सुलसा ?' सुलसा चौंको और पीछे लौट कर देखा।· · · मगध के सम्राट और सम्राज्ञी सुलसा के चरणों में नतशीश हो गये। बोले : ___ 'हमारे अपराध का अन्त नहीं, भगवती । हमारे राजवंशी रक्त की हजारों पीढ़ियाँ तुम्हारी अपराधी हैं। क्या हमें क्षमादान करोगी?' सुलसा अवाक रह गयी । उसके सर्वांग में जाने कैसी प्रीति की रुलाई-सी उमड़ आयी। उसका रोम-रोम अनुकम्पा से हर्षित हो आया। बोली सुलसा : 'श्री भगवान की एक किंकरी पर, इतना गुरुतर भार न डालें, महादेवी और महाराज । मैं तो त्रिलोक-पति के न्यायासन को एक चेरी मात्र हूँ।प्रभु का एक पायदान हूँ, जहाँ निखिल को शरण है । मैं कोई नहीं।' और औचक ही सुलसा चेलना को भुजाओं में भर कर रो पड़ी । नाग रथिक की छाती पर ढलक कर सम्राट बालक की तरह सुबकने लगे । अन्तरिक्ष से चन्दन, केशर और कल्प-कुसुम की वर्षा होने लगी। दूरान्त व्यापी जयकारों में सारे लोक का प्राण डूब गया। अगले दिन ब्राह्म मुहूर्त में अचानक द्वार पर दस्तक हुई । सुलसा उस समय नित्य नियमानुसार गहरी ध्यान समाधि में निमग्न थी । वह आसन पर अटल रही, और उसे लगा कि उसी ने जा कर किंवाड़ भी खोल दिये हैं। . . . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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