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उनके समरस शान्त भागों में कहीं-कहीं दिगंगनाएं झुक कर अपने आरक्त मुख निहार रही हैं। इन परिखाओं के तट-प्रदेशों में एला और लवंग लताजों के वन हैं। उनकी विरल-शीतल छाया में नग्न देव-गन्धर्व युगल जलकेलि में लीन हैं।
कई परकोटों और परिखाओं के पार वे चारों दिशाओं में खुलते चार उत्तुंग मोपुर दिखाई पड़ रहे हैं। खगोल का समस्त सौर-मण्डल उन बिराट तोरणों के शिखरों में परिक्रमा दे रहा है। उन गोपुरों के बुर्जी और गवाक्षों में अनेक यक्ष, किन्नर, मन्धर्व, व्यन्तर, पिशाच, सतत सावधान रह कर पहरा दे रहे हैं। जो यहां आये, उसे अप्रमत और जागरूक हो जाना पड़ेगा। अहंकार, प्रमाद और अन्धकार का प्रवेश यहाँ असंभव है। पाप स्वयं यहाँ जाग कर, प्रहरी हो गया है। मान के पर्वत इन योपुरों की तोरण-देहरी पर चूर-चूर हो जाते हैं। वह सर्व चराचर-वल्लभ त्रिलोकीनाथ की राजसभा है । यह धर्मचक्रेश्वर महावीर की धर्म-सभा है।
देख रहे हैं योगी ऋषभ । प्रत्येक गोपुर के शीर्ष पर छत्र, चमर, श्रृंगार आदि एक सौ आठ मंगल-द्रव्यों को पंक्ति देदीप्यमान है। हर गोषुर के दोनों पाश्वों में नाट्य-शालाएँ बली हुई हैं। हर नाट्य-शाला में तीन-तीन खण्ड हैं । सर्वोपरि खण्ड में बसीस-बत्तीम देवांगना निरन्तर नत्य करती रहती हैं। नीचे के दोनों खंडों में किन्नर और गन्धर्व जाति के देवता अपनी अंगनाओं के साथ संसार जीवन को बहमुखी लीला को नाना नाट्य-प्रयोगों में व्यक्त करते रहते हैं।
इन गोपुरों को पार कर जो परिमण्डल है, उसमें चार महाबन एक मेखला की तरह संकलित हैं। पूर्व दिशा में अशोक बन है : जिमको छाया में पहुँचते हो आत्मा वीतशोक हो जाती है। दक्षिण में मप्तपर्ण वन है : जिसके पल्लवमर्मर में जिनेश्वर कथित सप्त-तत्त्व का बोध अनुमुंजित होता रहता है । पश्चिम में चम्पक वन है : जिसके पीले-सफेद चम्पक फूलों को बहुत महीन भीनी गंध में अन्तश्चेतना को शीतल ऊष्मा बाष्पित होती रहती है । और उत्तर दिशा में है वह आम्रवन । उसकी श्यामल छाया में झुकी डालों पर पियराते आमों के लटालूम झुमके हैं । उन आमों की गहरी केशरिया माधुरी में, स्पर्श-मुख अमूर्त हो गया है।
ये चारों वन चैत्य-वृक्षों के हैं । इनकी पन्निम हरियालियों में चिति-शक्ति किरणों से हल्के फेनिल रंगों में बहुआयामी चित्र ऑकती रहती है। यहाँ हवाएं आकाश की निरंजनता को मनमाना शिल्पित करती रहती हैं । इनके पल्लवों की नसों में निसर्ग से ही लोक-लोकान्तरों की विविध रचनाएँ अंकित होती
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