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फिर एक दिन राजगृही में उदन्त फैला कि नगर के पश्चिम द्वार पर साक्षात् महाकालेश्वर शंकर अवतरित हुए हैं । वे वृषभ के वाहन पर आरूढ़ हैं । उनके ललाट पर चन्द्रमा शोभित है। उनकी जटा में गंगा फूट रही है । भगवती पार्वती उनके अंग-संग अटूट जुड़ी हैं । वे महेश्वर गजचर्म परिधान किये हैं । वे त्रिलोचन हैं। उनकी दिगम्बर देह पर भस्म का अंगराग आलेपित है । भुजाओं में खट्वाङ्ग, त्रिशूल और पिनाक धारण किये हैं । उनकी नीलकण्ठ गर्दन रुंड-मुंडों की माला से मण्डित है । उनके गणों के रूप में नाना भूत-पिशाच, वैतालिक उनकी सेवा में प्रस्तुत हैं ।
वे वर्तमान काल की वक्र और विषम धारा को अपने ताण्डव नृत्य से छिन्न-भिन्न कर, मंगल कल्याण की नूतन शंकरी धारा प्रवाहित करने आये हैं । उनकी वाणी में एक साथ रुद्र रोष, और सर्वतोष के मंत्र उच्चरित हो रहे हैं ।
इस बार तो सारा मगध जनपद उनके दर्शनों को उमड़ आया है । जनजन को सर्वकामपूरन शांभवी कृपा और दीक्षा प्राप्त हो रही है ।
मुलसा की एक अभिन्न सहेली आज फिर उससे देवाधिदेव शंकर के दर्शन का अनुरोध करने आयी 'चलो मुलसा, महाकाल के स्वामी स्वयं तुम्हारे पुत्रों को काल के कवल से छीनकर तुम्हारी गोद में लौटा देने आये हैं । अनेकों मृतकों को पुनर्जीवन दे कर वे अपनी संजीवनी शक्ति का प्रमाण दे रहे हैं ।'
सुलसा अपनी जाज्वल्य एकाग्र दृष्टि से आकाश के शून्य को भेदती - सी बोली :
'नहीं वैजयन्ती, मुझे किसी महाकालेश्वर के दर्शन नहीं करने । यदि वे स्वयं महाकाल होते, और काल के स्वामी होते, यदि वे अपने दावे के अनुसार मृत्युंजयी होते, तो किस न्याय से उन्होंने मेरे निरपराध बेटों को अपने आज्ञाकारी काल का ग्राम हो जाने दिया । और अब किस न्याय से वे मेरे काल-कवलित बेटों को लौटाने आये हैं 'नहीं वैजयन्ती, मैं नहीं आऊँगी । ऐसे कोई महाकालेश्वर शंकर सचमुच सत्ता में विद्यमान भी हों, तो मुझे उनसे कोई प्रयोजन नहीं ।
'मुझे निश्चित प्रतीति हो गई है, कि मेरा और मेरे पुत्रों का कर्त्ता, धर्ता, हर्ता मेरे और उनके स्वयं के सिवाय, अन्यत्र कहीं कोई नहीं। हम स्वयं ही अपने कर्त्ता, धर्त्ता और हर्त्ता हैं । स्वयं ही अपने जीवन और मरण के स्वामी, विधाता, परित्राता हैं । हम स्वयं ही महाकाल मृत्युंजय हो कर, अपने को मृत्यु से उबार मकते हैं । किसी अन्य ईश्वर, देव, दनुज मनुज की ऐसी सत्ता नहीं जो मुझे मृत्यु दे सके, या उससे तार सके । मेरा तरण तारण, मेरे सिवाय अन्य कोई नहीं ।'
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