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के बल की । देखते-देखते, अन्तिम साँस तक जूझते एक के बाद एक वे बत्तीसों सुलसा-पुत्र लिच्छवियों की नृशंस तलवारों के आखेट हो गये ।।
· · · नाग रथिक चीत्कार कर उठा, और हतचेत हो कर धराशायी हो गया । लिच्छवियों ने देखा कि श्रेणिक स्वयम् हतबुद्ध-से रथ में प्रतिकार हीन बैठे रह गये हैं। कि चाहे तो कोई भी उनकी हत्या कर दे।
लिच्छवि देख कर दिङ्मूढ़ हो रहे। प्रतिकार-हीन योद्धा की हत्या करना उन्हें अपने गौरव के विरुद्ध लगा। सो वे सुरंग में उतर कर फिर वैशाली को लौट पड़े।
सम्राट को नहीं सूझा कि वह क्या करे, इस सन्तान-वियोग से मूच्छित पिता का, और उसकी रक्षार्थ कट गये इन बत्तीस कुमारों की लाशों का, जिनके बत्तीस लक्षण व्यर्थ हो गये हैं ! उसकी आँखों में आँसू आ गये। पर · · · पर.. वह कर ही क्या सकता है ? __ उत्कट अपराध-बोध से भारी हृदय लिये सम्राट, स्वयम् रथ हाँकता महलों में लौट आया । तत्काल आदेश दिया गया कि नाग रथिक को घर पहुँचवाया जाये । और उन बत्तीस सारथी-पुत्रों की राजसी गौरव के साथ अन्त्येष्टि कर दी जाये ।
· · ·और श्रेणिक अपने अपराध-बोध से पलायन कर, अपने अन्तःपुरों की रूपसियों में बिलम गया।
यह सम्वाद जब सुलसा को मिला, तो उसके हृदय की धड़कन थम गयी। उसकी नाड़ियों का खून जम गया । शून्य आँखा से वह शून्य ताकती रह गयी । उसकी आँख से एक भी आँसू न गिरा। ____एक छायाकृति की तरह मूच्छित पति का सर गोद में ले कर, उनका उपचार करने लग गई । जब नाग रथिक होश में आया तो बच्चे की तरह बिलख कर सुलसा से लिपट गया। उसके एक-एक अंग में सर गड़ा-गड़ा कर, वह फूटफूट कर रोने लगा। उसके आर्तनाद और विलाप से सारा पुरवा पसीज गया। नीलतारा नदी का प्रवाह भी जैसे रुक कर पथरा गया। सुलसा मौन मूक, चुपचाप पति को सहारती, सम्हालती, झेलती रही । केवल अपने स्पर्शों के मार्दव से उसे आश्वासन देती रही। पर शब्द उसमें नहीं था, उसकी आँखें एकदम सूखी और सूनी थीं।
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