________________
-
२१७
कुछ मास बीत गये । काल पा कर, उसके उदर में एक साथ बत्तीस गर्भ उत्पन्न हुए। विपुल फलभार से झुक आई द्राक्षा-वल्ली की तरह वह पृथ्वी से तदाकार हो रही। वह कृषोदरी वज्र के सार जैसे बत्तीस गर्भो को सहने में असमर्थ हो गयी । निरन्तर पीड़ा से उसकी पेशियाँ और स्नायुजाल फटने-से लगे । उस धृति ने अचल हो कर कायोत्सर्ग धारण कर लिया। अपनी उस महा गर्भ-वेदना को प्रभु के प्रति समर्पित कर दिया।
कि तभी वह देवकुमार सम्मुख आ उपस्थित हुआ और बोला : __'देवी ने एक साथ सारी गुटिकाएँ भक्षण कर लीं, यह अनर्थ हो गया । सारे हिरण्य-बीज एक साथ अंकुरित हो उठे । भवितव्य अटल है । समान आयु वाले बत्तीस पुत्रों को देवी एक साथ तेज शिखाओं की तरह जनेंगीं। वह टल नहीं सकता । लेकिन अब आपको प्रसव-पीड़ा नहीं होगी। सहज ही यथा समय प्रसव हो जायेगा। देवी निश्चिन्त होकर सुख से काल-यापन करें।'
और तत्काल देव अन्तर्धान हो गया। सुलसा को लगा कि उसका कटिदेश फूल की तरह हल्का हो गया है । उसका शरीर निर्भार हो गया है । और जैसे वह सुगन्ध में तैर रही है। और उसी दिन से वह पृथ्वी की तरह गूढ गर्भा हो कर, मुक्त विचरने लगी।
__ गर्भवती सुलसा के चेहरे पर, पके आम की पीलिमा दमक उठी है। मानो उसके तन-मन मधुर आम्र-गंध में ही बसे रहते हैं । इतका हलकापन तो उसने पहले भी कभी अपने शरीर में अनुभव न किया था। फिर भी जैसे वह रस से छलाछल भर उठी है ।
उस ईशान देव के आगमन की दैवी घटना उसे भूलती नहीं है। मानो वह एक सपना मात्र था। लेकिन वह जो उसके शरीर में मूर्त हो रहा है, उसे निरी स्वप्न-माया कह कर कैसे नकारे ? उस अपार्थिव घटना का यहाँ पार्थिव में प्रमाण मिल रहा है। · · · मेरा शरीर और मेरे बत्तीस गर्भ उसकी साक्षी दे रहे हैं । मेरे शरीर के तट पर, दिव्य ने पार्थिव में प्रवेश किया है।'
देव-सृष्टि और परलोकों की धर्म-कथाएँ वह बचपन से सुनती रही है। सोचती थी वह सब एक भव्य कल्पना मात्र है, जो मनुष्य को उत्साहित करती है, प्रेरित करती है। वह कोई वास्तविकता नहीं, निरी दन्त-कथा है। लेकिन जो उसके जीवन में घटा है, उसने उसकी दृष्टि को ही बदल दिया है। उसका विश्व अब असीम तक विस्तृत हो गया है। हर चीज़ के पर पार और भी बहुत
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org