________________
१९१
थी। कुछ अर्से बाद देखा है, कि वही सुन्दरी कई बच्चों की माँ हो गई है । उसके चेहरे का वह ओप कुम्हला गया है । नाक-नक्श की धार कुंठित हो गयी है । कमनीय बाँहों की पेशियाँ ढीली पड़ गईं हैं। वक्षोज के उन्नत कुम्भ ढलक आये हैं । उसकी आँख से आँख मिलने पर अब कोई आश्चर्य घटना नहीं घटती । कोई भाव या स्पन्दन नहीं जागता ।
'चारों ओर सर्वत्र यही दीखता है । रक्त-मांस की वही जादुई माया देखते-देखते अवसन्न हो जाती है। फैले पड़े हैं चारों ओर रूप-यौवन के ठीकरे, खण्डहर, ढलते मांस के भाण्ड, जिनमें से सड़ान और दुर्गन्ध आने लगती है । सब कुछ साधारण हो जाता है । सब कुछ निरन्तर क्षयग्रस्त हैं। लोग इसे सहज स्वीकार कर इसमें जिये चले जा रहे हैं ।
लेकिन नन्दिषेण का मन इसको स्वीकारने में असमर्थ हैं । इस मांस, मल, वमन, भिष्टा, दुर्गन्धि में उसका जी घुटने लगता है । संसार की इस अनिवार्य नियति पर उसका प्राण सदा संत्रस्त और उदास लीला से भाग कर बाहर खड़ा हो गया है। इससे निरन्तर संत्रस्त होता रहता है ।
रहता है। वह इस नाशइसका दृष्टा हो गया है, और
पूर्ण कामिनी को उसने प्रथम दिन से ही खोजा है। एक के बाद एक अनेक स्त्रियों को वह खोज - खोज कर ब्याह लाया है। हर नयी रानी के सौन्दर्य में कोई रन्ध्र, कोई त्रुटि देख वह उच्चाटित हुआ है । भाग निकला है और भी नई की खोज में । वेत्रवती के तीर गन्धर्वसेना को किन्नरियों के साथ क्रीड़ा करते देख, कैसे दिव्य सौन्दर्य - सम्वेदन से वह अभिभूत हो गया था । फिर उसे ब्याह कर, वह उसके रूप-समुद्र में कैसी गहरी समाधि में मूच्छित हो गया था ।
एक दिन वह उसके नीलम - जटित स्नानागार में छुप कर बैठ गया था । उसके स्नान करते सुनग्न अंगों की मरोड़ों में कैसी अश्रुत संगीत-लयों का उसने अनुभव किया था। अचानक उसकी निगाह अपनी परम प्रिया की बगलों में उगे केशपुंजों पर चली गई थी। उसे कैसी ग्लानि हो गई थी। कंचुकी में आबद्ध जिन भुजमूलों की मोहोष्म गहराई में सर डुबा कर वह परम सुरक्षा अनुभव करता था, वहाँ कैसे काले कदर्य बालों के गुच्छ उग आते हैं । मैल के पुंज । • और उसके बाद गन्धर्वसेना से वह मुँह बचाता था । उसकी रूपश्री और प्रीति उसकी निगाह में फीकी पड़ गयी थी ।
Jain Educationa International
अपनी एक और रानी मधुगन्धा के सुगोल स्तन के नीचे उसे अचानक एक बड़ा सा काला मस्सा दीख गया था, जिसमें दो-तीन छोटे केश उगे थे । तो उन स्तनों की वह सुगोल आकृति काफूर हो गयी थी । ग्लानि से उसका जी कसैला हो गया था । आलिंगन टूट गया था । मन्दारवती के शरीर में एक
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org