SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८३ कुवलय नवदल सम रुचि नयने सरसिज दल विभव कर चरणे श्रुति सुख कर परमृत वचने कुरु जिन नति मयि सखि विधु-वदने । बहु मत्त मलिन शरीरा मलिन कुचेलाधि विगत तनु शोमा तद्गमनदग्ध हृदय शोकातप शुष्क मुख कमला विगता गत लावण्या वरकांति कलाकलावषीर मुक्ता किं जीविष्यत्यवनिका नाथेपि गते वयं योयम् । इस विदग्ध प्रणयगीत की स्मृति से सोमदत्त पागल-मातुल सा हो गया। 'ओह, कैसे हैं ये भगवान ! इनकी मुख छबि ने मेरी काम-वासना, मिलनाकुलता और विरह-व्यथा को हज़ार गुना कर दिया।' एकाएक वह उच्चाटित हो उठा। पास बैठे वारिषेण से बोला : 'वारिकुमार, तुम मेरे चिर दिन के अन्तर-सखा हो। मेरी प्राण-पीड़ा को तुम से अधिक कौन समझेगा । मैं यहाँ एक पल भर भी नहीं ठहर सकता । श्री भगवान की आँखों में मैंने सुना है, देखा है, मेरी श्यामा मुझे अनन्तों में डाक दे रही है। उसकी विरह वेदना मैं सह नहीं सकता। मैं चला वारिषेण !' कह कर प्रकोष्ठ के पिछले द्वार से सोमदत्त निकल पड़ा । तत्काल वारिषेण भी उसके पीछे चल पड़ा । समवसरण से बाहर निकल कर, मार्ग में वारिषेण ने कहा : 'मित्र सोम, ऐसी उचाट मनोदशा में तुम्हें अकेला न जाने दूंगा। चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा आऊँ। एक विनती मानोगे? रास्ते में राजगृही पड़ेगी। कृपया, कुछ देर मेरे घर का आतिथ्य स्वीकार करना । फिर हम आगे बढ़ जायेंगे।' 'तुम कितने सहृदय हो, वारिकुमार । मेरी व्यथा के सच्चे सहचर हो । जो तुम कहोगे, वही होगा।' और दोनों मित्र द्रुत पगों से राजगृही की राह पर बढ़ते चले गये। अपने महल के अलिन्द में असमय ही दो तरुण मुनियों को अतिथि रूप में खड़े देख, चेलना विस्मय से विमूढ़ हो रही । क्या वारिषेण अपने असिधारा पथ से च्युत हो कर घर लौट आया है ? और यह एक और सुकुमार श्रमण ? यह कौन है ? क्या ये दोनों ही योग-भ्रष्ट हो कर इस अन्तःपुर में शरण खोजने आये हैं ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy