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वह उनके हाथ नहीं आ रहा । इस क्षण की उसको अनिरि गति के अन्धड़ में, वे जाने कहाँ पीछे छूट जाती हैं।
मध्यम पावा नगरी के महासेनवन नामा उद्यान में, प्रभु चलते-चलते अचानक थम गये। · · देखते-देखते वे अचाक्षुष हो गये। और अचानक ही वे, दूर आर्य सोमिल के प्रांगण में चल रहे महान यज्ञ की अग्नियों में 'अग्निमीले पुरोहितं' हो कर चुपचाप गुज़र गये । महासेनवन की चैत्य-भूमि में, पद्मासनासीन प्रभु का सूक्ष्म ज्योतिर्मय स्वरूप केवल देव-सृष्टियों को दिखाई पड़ रहा है । कुबेर के विश्वकर्मा ऋभुगण, संकेत पा कर प्रभु के चहुँ ओर दिव्य समवसरण के निर्माण में संलग्न हो गये।
लोक की आँखों से ओझल, लोकेश्वर महावीर की कैवल्य-ज्योति सर्वत्र उद्भासित होते हुए भी मौन है । मानुषोत्तर समुद्र थमे हुए हैं, उस मानुषोत्तर पर्वत के भीतर-मनुष्य लोक मे बह जाने के लिये । पर वह मौन है, निस्पन्द है, निस्तब्ध है । उसकी वाचा नहीं फूट रही। उसे किसकी प्रतीक्षा है ? क्या लोक में कहीं उसका कोई श्रोता नहीं ? कहाँ है वह नरोत्तम प्रथम श्रोता ? कहाँ है वह वर्तमान लोक का ब्राह्मण-श्रेष्ठ, जो ब्रह्म-पुरुष की परब्राह्मी ज्ञानज्योति को झेल कर, उसे समस्त चराचर प्राणियों के हृदयों तक पहुंचा सके ? कहीं नहीं है वह, कोई नहीं है वह यहाँ, इस देश-काल में ?
कहीं यज्ञ-पुरुष से विरहित, यज्ञों के मंत्रोच्चार व्यर्थ हो रहे हैं । · · ·यज्ञभूमि के अन्तरिक्ष में, हुताशत की उदग्र नोक पर, एक नीरव ध्वनि मँडला रही है :
पंचेव अत्थिकाया, छज्जीव-णिकाया महन्वया पंच।
अट्ठ यपवयण-मादा सहेउओ बंध-मोक्खो य ।। __ इसे सुनकर तुमुल मंत्रोच्चार के कोलाहल में भी यज्ञ का महाऋत्विक इन्द्रभूति गौतम चौंक उठा । यह किसने यज्ञ-भंग कर दिया ? देववाणी के इस दिव्य प्रवाह के बीच, किसने उच्चरित की यह असंस्कृत लोकभाषा ? ओह, लेकिन अपूर्व है तत्त्व का यह नया परमाणविक विस्फोट ! यह उत्तर मांग रहा है, यह आहुति माँग रहा है । मेरे अहम् की ? • • 'यह मेरी सत्ता को ललकार रहा है । मैं हूँ, या नहीं हूँ ? • • 'कहाँ मिलेगा इसका उत्तर ? कौन देगा इसका उत्तर ?
... • “यहाँ मिलेगा इसका उत्तर, मैं हूँ इसका उत्तर!'
• • 'यह किसकी आवाज़ है ? इन्द्रभूति गौतम एक मर्मान्तक आघात से झल्ला उठा। · · 'मुझसे बढ़ कर ज्ञानी लोक में कौन हो सकता है, जो मेरा उत्तर हो सके ? माया है यह । और उक्त आन्तर ध्वनि की अवज्ञा कर, मस्तक
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