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पीछे को फेंकता हुआ, वह अपने यज्ञोपवीत को बेहद बेहद तानता हुआ, चण्ड से चण्डतर घोष के साथ मन्त्रोच्चार करता हुआ, समस्त याजनिक मण्डल को उत्तेजित करने लगा । कि कहीं वह विचित्र लोक भाषा की ध्वनि किसी के कान में न पड़ जाये ।
• और हठात् पद्मासनासीन अर्हतु महावीर खड़े होकर अन्तरिक्ष में डग भरने लगे । असंख्य- कोटि देवों तथा इन्द्रों की शोभायात्रा से परिवरित वे त्रिलोकीनाथ विद्युत्-वेग से विपुलाचल की ओर विहार कर रहे हैं ।
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