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उठा है । सो पानी पीने चला
हाथी है । अचानक वन में दावानल सुलग तार्त हो कर मेरुप्रभ हाथी सरोवर में गया। वहाँ कीचड़ में फँस गया । उसे निर्बल, निढाल देख, उसके शत्रु हस्ति ने आ कर उसे दन्त प्रहार से कर दिया। सातवें दिन उस पीड़ा से मर कर विन्ध्याचल में हाथी हो गया है ।
• एक दा यहाँ भी दावानल जागा देख, उसे पूर्व जन्म की वेदना की स्मृति हो आयी । उसे जाति- स्मरण हो गया। वह प्रतिबोध पा गया। वह विन्ध्याचल के समस्त हस्ति - मंडल का हस्तिराज है। उसे अपने यूथ की रक्षा की चिन्ता हुई । उसने झाड़-झाड़ियों का उन्मूलन करके, यूथ के संरक्षण हेतु नदी किनारे तीन स्थंडिल बनाये, जिनमें उसकी हस्ति प्रजा दावानल के प्रकोप से बच कर शरण पा सकती है ।
लहू-लुहान वह फिर
अन्यदा फिर दावानल प्रकटा । हस्तिराज मेरुप्रभ अपने रचे उन स्थंडिलों की ओर भागा । वहाँ पहले ही मृगादि अनेक निर्दोष प्राणियों ने शरण खोज ली थी । दो स्थंडिल खचाखच भर चुके थे । तीसरे स्थंडिल में उसे कठिनाई से खड़े रहने भर की जगह मिली। वहाँ एकाएक शरीर खुजाने को उसने एक पग ऊँचा किया । ठीक तभी परस्पर अनेक प्राणियों के संघर्ष में कुचला जा रहा एक
ख़रगोश, हस्तिराज के पैर वाली जगह में आ खड़ा हुआ । हस्तिराज ज्यों ही पैर टिकाने को हुआ, तो वहाँ मृदुल ख़रगोश को देख, उसका पैर उठा ही रह गया । अनुकम्पा से उसका सारा प्राण स्पन्दित हो उठा । वह तीन पगों पर ही अकम्प खड़ा रह गया । ढाई दिन में हुआ । ढाई दिन हस्तिराज तीन पगों पर ही दावानल शान्त होते ही, वह शशक और अन्य अपनी राह चले गये ।
दावानल शान्त
और अचानक गन्ध-कुटी के शीर्ष पर से सुनाई पड़ा :
भूख प्यास से पीड़ित हस्तिराज भी पानी की टोह दौड़ पड़ा । पर ढाई दिन तक न टिकने से उसका चौथा पैर सुन्न हो गया था । वह टिक न सका, और हाथी - राजा धरती पर लुढ़क पड़ा। भूख प्यास से तड़पते घायल हस्तिराज ने तीसरे दिन प्राण त्याग दिये ।
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टँगा रहा । सारे प्राणी
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