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-रात और दिन का भेद मिट गया है । मेघकुमार की चेतना चिन्ता और चिन्तन् की एक नदी हो कर रह गई है । जो सारे किनारे पीछे छोड़ती हुई, उस अन्तिम किनारे की ओर दौड़ रही है, जिसे वह दूर से देख आया है । रातोदिन कामिनी और कचनार के फूल झड़ते रहते हैं । तलदेश में फूलों की भीनी शैया महकती है । और उसमें से एक अन्तहीन करुणा की रागिनी उठती रहती है । मेघकुमार करवटों की कठोर चट्टानों को भेदता, किसी अज्ञात की ओर हाथ-पैर मार रहा है ।
लेकिन यह विरागी युवराज, विलासी भी कम नहीं था । जितना ही तीव्र उसका विराग था; उतना ही निविड़ उसका विलास भी था । वह इस देह के सुख-भोगों में ही पूर्णत्व का खोजी और अभिलाषी था । क्यों नहीं इन्द्रियों के सुख ही अनन्त और अचूक हो जायें ? क्यों न इस देह में ही ऐसा पूर्णत्व आ जाये, कि देह का काम ही पूर्णकाम हो जाये ? अपने अन्तःपुरों की सौरभ-विधुर शैयाओं में, अपनी रानियों के अबाध आलिंगनों में, वह इस पूर्णत्व की खोज में, पराकाष्ठाओं तक गया है । लेकिन हर बार, वह बिछुड़ कर अकेला छूट गया है । क्षण भर पूर्व की आलिंगन - बद्ध रमणी, शैया पर त्यक्त और परायीसी हो पड़ी है । वह अपने में अवसन्न और बन्द हो गयी है । और मेघ की काम-व्यथा तड़पने को अकेली छूट गयी है ।
उसने अपने विलास महलों की तमाम सुख -सामग्री को बार- बार एक पूर्णत्व और सम्वाद में सँजोना चाहा है। लेकिन हर भोग की सीमा सामने आते ही, सम्वाद एक झटका दे कर अचानक टूट जाता है। एक बेसुरी रागिनी बजने लगती है । यहाँ का निविड़तम सुख भी कितना अधूरा है ? हर सुख में कहीं बाधा है, सीमा है, उपाधि है । यहाँ का कोई सुख, भोग और तृप्ति निरुपाधिक नहीं । छोर पर एक निःसारता सामने आ खड़ी होती है । और वह एक गहरी आह भर कर, फिर किसी अन्य ऐन्द्रिक सुख में पूर्णत्व टोहने लगता है ।
उसके अन्तःपुर में आठ रानियाँ हैं । उसका सौन्दर्य - खोजी विलासी मन, लावण्य की ये आठ विलक्षण मुद्राएँ द्वीप - द्वीपान्तर से खोज लाया है । उनमें से हर एक का सौन्दर्य एक-दूसरी से बढ़ कर है, फिर भी अपने आप में अप्रतिम है । हर रानी की अपनी एक निराली भंगिमा है । हर एक का अपना एक लौनापन है । हर एक की अपनी एक अनोखी देह- गन्ध है । हर एक का अपना एक रमण - आस्वादन है । पर हर एक में कुछ चूकता नज़र आता है । कुछ अधूरा भास होता है । कोई ऐसी फाँस अचानक कसक जाती है, क वह उसे दो टूक अपनी रमणी से अलग कर देती है । वह समग्र, एकाग्र, सब रानियों को पूर्ण पा लेना चाहता है । पर वे टूटी माला के मनकों की
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