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________________ १५० पाने को ही तो सृष्टि का हर प्राण तरस रहा है । उसे तू पा गया । भुक्ति के भीतर ही तुझे मुक्ति का आस्वाद कराने आयी है. चेलना ।' 'लेकिन जब मैं न रहूँगा, तो वह कहाँ होगी ? क्या करेगी ? किस के साथ चलेगी ? उसे कष्ट तो न होगा ? उसकी संकट - रात्रियों का संगी कौन होगा ?" श्री भगवान किंचित् मुस्कुरा आये : 'उत्तम सम्यक् - दृष्टि हो कर भी, तू कितना मोह में डूबा है, आत्मन् ? जब तू और चेलना नहीं मिले थे, तब भी वह थी, और तेरे बिना वह रह सकती । और तब तू भी था, और उसके बिना भी जीता रह सकता था । यहाँ कोई किसी के अस्तित्व की शर्त नहीं । सब स्वायत्त और स्व-निर्भर हैं । कोई किसी पर अवलम्बित नहीं । परावलम्बन नहीं, स्वावलम्बन ही नैसर्गिक है । वही स्वभाव है । अन्य सब मोहजन्य भ्रान्ति है ।' 'लेकिन चेलना कहाँ रहेगी, क्या करेगी, कैसे जियेगी, किसके साथ चलेगी? कौन होगा उसका संगी ?" श्री भगवान फिर किंचित् मुस्कुरा आए । 'वह अपने में रहेगी । अपने उपादान में से जो आयेगा, उसे ही वह करेगी । अपने स्वभाव में, स्वभाव से जियेगी। अपने साथ चलेगी । आप ही अपनी संगी होगी । चेलना ऐसी चेतना ले कर ही जन्मी है, राजन् । तुम्हारा आश्रय वह हो सकती है, पर तुम में वह आश्रय नहीं खोजती । तुम्हें वह सहारा दे सकती है, पर तुम्हारे सहारे पर वह अवलम्बित नहीं । वह निर्मोह और निर्भ्रान्त है, राजेश्वर ।' 'निर्मोह हो कर भी वह मुझे इतना प्यार कर सकी, प्रभु ?' 'निर्मोह हो कर ही कोई ऐसा अमोघ प्यार दे सकता है। ऐसा असीम भोग दे सकता है । जैसा चेलना ने तुम्हें दिया है । रमणी के राज्य में, चेलना अप्रतिम है, श्रेणिक । वह आप्त-काम है । इसी से वह निर्ग्रन्थ और परम रमणी भी है। जिस सुख को अथाह भोगा, उसे दर्शन और ज्ञान में पाओ, राजन् । स्वानुभव के आलोक में ही उस रहस्य को साक्षात् करोगे ।' 'और जब मैं नरक में हूँगा, तब चेलना कहाँ होगी, भगवन् ?' 'वह महावीर के आर्यिका संघ में सहज तप के तेज से, लोक में चन्द्रमा की तरह प्रकाशित होगी । वह अनेकों का आश्रय होगी । वह दुखी मात्र की शरणदात्री, पूर्ण धात्री माँ होगी । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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