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सौधर्म-पति शकेन्द्र ने विशाल चांदी के घण्ट को कास्य के डंके से प्रताड़ित किया। · कुछ ही क्षणों में कुबेर आ उपस्थित हुआ :
'आज्ञा करें, इन्द्रेश्वर शकेन्द्र, सेवा में प्रस्तुत है। अद्भुत है उल्लास का यह क्षण । मेरी ये बाँहें सहस्रबाहु हो कर, कोई अपूर्व रचना करने को अकुला रही हैं । देवलोकों के महाशिल्पी और वास्तुकार ऋभुगणों की आँखों में नवनवीन सौन्दर्य सृष्टियाँ उभर रही हैं। उनके अंग-अंग किसी अपूर्व सर्जना के उन्माद से झूम रहे हैं । यह किस परम रचना का उन्मेष है ? आज्ञा करें, शक्रेन्द्र । ___जानते तो हो, लक्ष्मीपति, आज तुम्हारी सौन्दर्य-सम्पदा के धन्य होने की चरम घड़ी आ पहुँची है । चलो ऋजु-बालिका के तट पर। देवाधिदेव तीर्थंकर महावीर की कैवल्य-बोधि को झेलने योग्य, समवसरण की रचना करो । जानो बन्धु, बारह वर्ष, पाँच मास, पन्द्रह दिन की अखंड मौन तपोसाधना के बाद, माज सर्वज्ञ अर्हत् महावार की धर्म-देशना अव्यावाच झरनों की तरह फूट पड़ने को है। वे अपनी निश्चल महासमाधि से बाहर आ गये हैं। उनके नयनों के उन्मीलन में तीनों लोक, तीनों काल के अणु-अणु के सारे परिणमन झलक रहे हैं। वे अब किसी भी क्षण चल पड़ने को उद्यत हैं। इससे पहले कि भगवान का प्रथम चरण उठे, या प्रथम वचन फूटे, तत्काल पृथ्वी पर चल कर उनके परिसर में समवसरण की रचना करो । ऐसा समवसरण, जहाँ से प्रवाहित होने वाली तीर्थकरी वाणी, कलिकाल के हजारों वर्षों के अन्ध प्राणिक संघों में, चुपचाप आत्माओं की भीतरी राहें आलोकित करती रहे।'
'हम तो केवल माध्यम के रचनाकार हैं, सौधर्मपति । पर उन जगदीश्वर की पारमेश्वरी ऊर्जा ही उस माध्यम को अपने योग्य बनाने में समर्थ हो सकती है । हम प्रयाणको उद्यत हैं, शक्रेन्द्र। देखो, हमारी हस्तिशाला में विराट धवल ऐरावत हाथी, सहस्रों सूंडों के साथ डोलता हुआ आविर्मान हुआ है । वह प्रस्थान का संकेत माँग रहा है। · · हमारी निधियाँ उसकी पीठ पर आरूढ़ हो चुकी हैं। . . अनुगमन को प्रस्तुत हूँ, स्वर्ग की तमाम ऋद्धियों, सिद्धियों, विभूतियों के साथ ।'
· · ·शकेन्द्र ने अनायास शंखनाद किया। उससे अन्तरिक्षों के स्तब्ध परमाणु झंकृत हो उठे। और सौधर्म स्वर्ग की देव-सष्टि, तुमल नृत्य, गान और वाजित ध्वनियों के साथ, प्रस्थान कर गई। उनके गतिमान विमानों की नानारंगी मणि-प्रभा, और ऋद्धियों के ज्योतिपुंजों से आकाश-मण्डल चित्रित हो उठे।
. . 'ऋजुबालिका नदी औचक ही चौंक उठी। वह रुक गई, और उसने मुड़ कर देखा। उसकी लहरों पर यह कैसी रंगारंग रोशनी की जगती उतर रही है ? उसके पानियों में ये कैसे गहन मृदंग और वीणाएँ बज रही हैं ? उसकी तरंग-तरंग पर उर्वशियाँ और अप्सराएं नृत्य कर रही हैं। रंगीन प्रकाश का
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