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कि वह लोकालोक के ऊपर शून्यों में चल रहा है । और इस ऊंचाई से यदि वह गिरा तो, पातालों में भी उसका पता न चलेगा। श्रेणिक भय से काँप उठा।
'नहीं, अब तू गिर नहीं सकता, श्रेणिक । अब तू नीचे नहीं आएगा, ऊपर ही जाएगा। अब तू पाप से परे जा चुका। अब तू कुछ भी असुन्दर नहीं कर सकता। नरक में भी चलेगा, तो कमल खिलेंगे। सारे कर्म-व्यापार
और भोगों के बीच भी तू प्रशम, संवेग और समत्व में आसीन रहेगा। जा, इस पृथ्वी को त्याग कर, इसे सम्पूर्ण भोग। जो सर्वस्व त्याग देता है, वही सर्व को अविकल भोग सकता है। .
'अकिंचनोऽहमित्यासम्व त्रैलोक्याधिपतिर्भवः ।
योगिगम्यम् तव प्रोक्तं रहस्यम् परमात्मनः ।। 'इस भाव से जीवन जी, श्रेणिक, कि कुछ भी मेरा नहीं है, और तू तीन लोक का अधिपति हो जाएगा। भगवत्ता के इस रहस्य को केवल योगियों ने जाना है। वही मैं तुझ से कहता हूँ, राजेश्वर ।'
'साक्षात् देख रहा हूँ, जान रहा हूँ, कि कुछ भी मेरा नहीं है। लेकिन.. लेकिन ..
'चेलना ?' 'मेरी अन्तिम ग्रंथि को पकड़ लिया, प्रभु ने ?'
'तू स्वयम् ही जानेगा, चेलना तेरी कौन है ?' - 'चेलना मेरी है, भन्ते ?'
'तेरी है, फिर भी तेरी नहीं । समत्व में सब कुछ तेरा है, ममत्व में कुछ भी तेरा नहीं है । सत्ता मात्र स्वतंत्र है। उसे उपलब्ध किया जा सकता है, उस पर अधिकार नहीं किया जा सकता। त्याग दे चेलना को, और वह चिरकाल तेरी है !'
'त्याग दूं? हमें बिछड़ जाना होगा। और चेलना महावीर की भिक्षुणी हो जायेगी ? और मैं · · · मैं · · · अकेला रहने को अभिशप्त हूँगा?' ___ शान्तम्, शान्तम्, शान्तम्, आयुष्यमान् । अर्हत् युगल को तोड़ने नहीं आये, उसे अखण्ड में जोड़ने आये हैं। उसे आत्म में संयुक्त और कृतार्थ करने आये हैं। उसे वियोग, शोक और मृत्यु से परे शाश्वती में अजर, अमर, सुन्दर करने आये हैं। चेलना तुम्हारी भुक्ति और मुक्ति एक साथ है, और रहेगी। पर अपने आत्म में वह स्वतंत्र है। तुम भी अपने आप में स्वतंत्र हो। प्रणय वह चिदाकाश है, जिसमें दो युगल आत्माएँ, एक दूसरे के अस्तित्व को पूर्ण
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