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________________ १४७ 'जो है, वही रह श्रेणिक । कोई विकल्प न कर, ग्लानि न कर । चिन्ता न कर, चेष्टा नकर । जोतू है, वही रह । और वह तू, संसार, नरक, स्वर्ग, मोक्ष से भी परे त्रिकाली ध्रुव है । केवल इतना जान, और इसमें रह, देवानुप्रिय।' ___ 'प्रतिबुद्ध हुआ, भगवन् । आश्वस्त हुआ, भन्ते । फिर भी पूछे बिना चैन नहीं। मेरा अगला भव कहाँ होगा, प्रभु ?' 'रत्नप्रभा नामा प्रथम नरक की पृथ्वी में। आत्मघात करके तू मरेगा। और अपने से बिछुड़ कर तू रत्नप्रभा के पंकिल अंधकार में दीर्घकाल आलोड़न करेगा।' 'आत्मघात करूँगा? नरक के अन्धकार में बिलम जाऊंगा! आह, जगज्जयी श्रेणिक का ऐसा अन्त ?' 'वह तेरा अन्त नहीं, वह मात्र एक अवस्था है, जिसमें से यात्रा करना तेरी नियति है । अपना आदि और अन्त तू आप है । और तू अनन्त है । फिर चिन्ता क्या?' 'मेरे नरक का कोई अन्त, कोई किनारा, भन्ते ?' 'तू आज क्षायिक सम्यक्-दृष्टि हो गया, आयुष्यमान् । अब तू जो कुछ भी करेगा, वह बन्धक नहीं होगा, बन्ध का क्षायक होगा, मुक्तिदायक होगा । तेरी हर क्रिया से अब कर्म झड़ेंगे, बंधेगे नहीं, बढ़ेंगे नहीं। तू आसन्न भव्यात्मा है, नरनाथ । निर्भय हो जा।' 'क्या है वह मेरी भव्यता, मेरा वह भवितव्य ?' 'तुझे अब क्षायिक सम्यक्त्व लाभ हो गया, श्रेणिक । यह निश्चल, अविनाशी और उत्कृष्ट सम्पदा है। भव्योत्तम राजेश्वर, अब तू किसी बात का भय न कर । तू निर्द्वन्द्व भोग, और मुक्त होता जाएगा। तेरी भुक्ति ही, तेरी मुक्ति होती जाएगी। नरों में तू सदा श्रेष्ठ रहा, तो एक दिन नरोत्तम नारायण हो कर लोक की मूर्धा पर भी आसीन होगा। उस दिन जगत् की सारी सत्ताएँ तुझे झुकेंगी।' 'मेरे हर स्वप्न को सिद्ध कर दिया, प्रभु ! लेकिन क्या होगा उसका रूप? मेरा भवितव्य ?' 'भविष्यातीत महा भविष्यत् । सम्यक्-दर्शन की कृपा से आगामी उत्सपिणीकाल में, तू इसी भरत-क्षेत्र में पद्मनाभ नामा प्रथम तीर्थकर होगा। आज जहाँ महावीर बैठा है, कल तू भी उसी अन्तरिक्ष पर आसीन होगा।' सम्राट का हर्ष उसके हिये में न समाया । उसे अपने वर्तमान में ठहरना असम्भव प्रतीत हुआ। एक प्रबल संवेग से वह उन्मेषित हो उठा। उसे लगा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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