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• • श्रेणिक उस उग्र तपस्वी के इस निदान से थर्रा उठा । उसके मूलाधार में प्रलय गर्जन करने लगा। और वह फिर देखता ही रह गया। · · · उसने प्रत्यक्ष देखा : तापस सेनक उस आर्तध्यान से मर कर अल्प-ऋद्धि वाला वानव्यन्तर देव हुआ। · · ·और यथाकाल सुमंगल राजा भी मर कर उसी गति में जन्मा। और फिर दो प्रेत व्यन्तरों का वह पैशाचिक संघर्ष . . . !
श्रेणिक की साँसों में प्रश्न की आरी-सी चलने लगी। कौन है यह सुमंगल ? कौन है यह सेनक ? .. और इनके बैर के दुश्चक्र का क्या कोई अन्त नहीं कहीं? और . . . . और आगे क्या होगा इन दोनों का . . . ? प्राणान्तक पीड़ा से श्रेणिक की चेतना में ऐंठन और उमेठन बढ़ती ही चली गयी। · · · कौन है यह सुमंगल, कौन है यह सेनक, और मेरा इनसे क्या लेना-देना कि मैं . . . मैं इनके दुश्चक्रो वैर की भट्टी में जीते जो झोंक दिया गया हूँ। मैं कौन · · · मैं कौन · · · मैं कौन ?
· · ·और अधर में आसीन श्री भगवान ने उत्तर दिया :
'तू ही वह सुमंगल राजा है, श्रेणिक। वान-व्यन्तर के भव से चयित हो कर तू महाराज प्रसेनजित की रानी धारिणी के गर्भ से श्रेणिक नामा पुत्र जन्मा
श्रेणिक को लगा कि वह सामने आ गयो अँधियारी खोह पार हो गयी है। और वह इस उजियाले तट पर श्री भगवान के समक्ष खड़ा है। · · · कि हठात् फिर एक तीखे प्रश्न के बाण ने बिंध कर, उसको चेतना को हताहत कर दिया :
'और वह सेनक क्या हुआ, भगवन् ?'
'वह चेलना को कोख से तेरे ज्येष्ठ पुत्र कूणिक अजातशत्रु के रूप में जन्मा है।'
श्रेणिक अगली साँस न ले सका। और पूछ बैठा : 'तो क्या सेनक का संकल्प सिद्ध होगा? क्या कुणिक मेरा वध करेगा, देवार्य ?'
'तपस्वी का अन्तिम निदान व्यर्थ नहीं हो सकता, श्रेणिक। जो तपाग्नि परम निर्माण करती है, वही निमित्त पा कर चरम विनाश भी करती है।'
'तो क्या अपने ही पुत्र के हाथों मेरा वध होगा, नाथ ?'
'नियति का विधान अटल है, और तू अभिशप्त है उसे झेलने को । कणिक तुझे बन्धन में डालेगा, और तू आत्मघात करेगा!'
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