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मारे ? एक श्रेणिक मरता जा रहा है, एक और श्रेणिक उसकी लचीली माटी में से उठा आ रहा है। और उसे सहसा ही सुनाई पड़ा :
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'जिसे तू बड़ा देखता है, वह तू ही है । जिसे तू छोटा देखता है, वह भी तू ही है । जिसका तू हनन करना चाहता है, वह तू ही है । जिसे तू अधीन करना चाहता है, वह भी तू ही है । जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है । जिसे तू दबाना चाहता है, वह भी तू ही है । जिसे तू हराना चाहता है, वह तू ही है । जिसे तू जीतना चाहता है, वह भी तू ही है। जिस पर तू प्रहार करना चाहता है, वह तू ही है। जिसका तू आखेट करना चाहता है, वह भी तू ही है । जिसे तू मार डालना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू मिटा देना चाहता है, वह भी तू ही है । तेरे सिवाय अन्य कोई नहीं, जिस पर तू कोई कार्यवाही कर सके। वह तेरा अधिकार नहीं । वह तेरा स्वभाव नहीं, श्रेणिक ।'
'तो मेरे उस स्वभाव का स्वरूप कहें, भन्ते स्वामिन् ।'
'वह कथ्य नहीं, केवल अनुभव्य है । वह केवल नेति नेति से जाना जा सकता है। • वाणी वहाँ से लौट आती है। वहाँ कोई तर्क नहीं पहुँच सकता । बुद्धि वहाँ प्रवेश नहीं कर सकती । जो आत्मा है, वही विज्ञाता है । जो विज्ञाता है, वही आत्मा है ।
'वह लम्बा नहीं है, छोटा नहीं हैं. गोल नहीं है, टेढ़ा नहीं है । वह चौरस भी नहीं, मण्डलाकार भी नहीं । वह ऊपर भी नहीं, नीचे भी नहीं । आगे भी नहीं, पीछे भी नहीं । वह शरीर नहीं है, संगी नहीं है । वह स्त्री नहीं है, पुरुष नहीं है, और नपुंसक भी नहीं है । वह ज्ञाता है, विज्ञाता है, उसको कोई उपमा नहीं । वह शब्द नहीं है, रूप नहीं है, गन्ध नहीं है, रस नहीं है, स्पर्श नहीं है । फिर भी वह यह सब एक साथ है। वह इन्द्रियाँ नहीं है, फिर भी सारी इन्द्रियाँ एक साथ है । ऐसा मैं प्रत्यक्ष देखता हूँ, और कहता हूँ, श्रेणिक !
'जो यह देखता है, वह देखता है । जो यह जानता है, वह जानता है, देवानुप्रिय श्रेणिक ।'
सुनते-सुनते श्रेणिक के मन का चिरकाल का कोलाहल शान्त हो गया । वह नीरव से नीरवतर होता चला आया । वह पल भर जैसे निर्मन, विश्रब्ध हो रहा । और फिर सहसा ही बोला :
'सत्य देख रहा हूँ, सत्य जान रहा हूँ, सत्य हो रहा हूँ, हे अर्हन्त । मैं कृतकृत्य हुका, मैं धन्य हुआ, मैं कृतार्थ हुआ, भन्ते त्रिलोकीनाथ ।'
'श्रेणिक भम्भासार अर्हत् को उपलब्ध हुए । अर्हत् उन्हें उपलब्ध हुए । श्रेणिक राजेश्वर का ग्रंथिछेद हो गया, गौतम । सम्यक्त्व-चक्षु उनके भ्रूमध्य में
खुल गया,
गौतम ।'
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