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________________ . १३७ नग्न तलवारें लिये, या धनुष-कमान चढ़ाए एकोन्मुख भाव से विपुलाचल की ओर धीर गति से अग्रसर हैं । सैनिक अभियान-वाद्य के साथ मिलकर, मारू बाजों का झंझाघोष पंचशैल की तलहटियों को जैसे प्रलय के ज्वार से आलोड़ित किए दे रहा है। अनाद्यन्त इतिहास का लोहा और फ़ौलाद नग्न होकर, इस सैन्य-समुद्र पर वाहित है। और सम्राट बिम्बिसार श्रेणिक बारम्बार उस पर निगाह डालता हुआ, अपनी प्रभुता के शिखर पर अपने को उत्तोलित अनुभव कर रहा है । उसे विश्वास हो गया है कि उसकी सत्ता को मात करने वाली कोई सत्ता अभी धरती पर नहीं जन्मी। . . 'राजराजेश्वरी चेलना सब-कुछ को साफ देखती हुई निर्मन और निर्विचार, अपने में अवस्थित है । अपने स्वामी के तन, मन, चेतन, भीतरबाहर को उससे अधिक कौन अनुक्षण जानता है। आख़िर तो उसी के कन्धे पर कोहनी टेक कर यह विजेता अपनी प्रभुता की चोटियों पर मँडला रहा है, इतरा रहा है। चेलना यदि अपना कन्धा वहाँ से हटा दे तो ? • • • ___ . . लेकिन प्रकट में यह सत्य है कि, आज पहली बार मगध के सम्राट और सम्राज्ञी अपने समस्त परिकर और वैभव के साथ सर्वज्ञ महावीर प्रभु के समवसरण में वन्दना के लिए जा रहे हैं । श्रेणिक के शरीर के एक-एक अणु में जैसे भूकम्प थमे हुए हैं । और वह अपने अन्तरतम में जान रहा है, कि उसके भीतर एक विस्फोट घुमड़ रहा है। वह फूटा तो, इतिहास को एक बार शीर्षासन में उलट कर रख देगा। · · ·आगे-आगे चल रही हैं राजराजेश्वरी चेलना देवी। उनका अनुसरण कर रहे हैं, राजाधिराज बिम्बिसार श्रेणिक । समवसरण के परिसर में पहुँचते ही श्रेणिक को लगा, जैसे उनके पैर बहुत मुलायम हवा में पड़ रहे हैं। भीतर की हठीली हड्डियाँ मानों एकाएक तरल हो आयी हैं। हाथ से निकले जा रहे अपने प्रचंड शरीर को श्रेणिक ने थाम कर रखना चाहा । अपने सिराते अस्तित्व को कस कर भींचने की बेचैनी से वे छटपटा रहे हैं। .. मानांगना भूमि में पहुंचते ही वे चौकन्ने हो गए। उनकी निगाहें कोई सहारा खोजने लगीं, कि टिकी रह सकें। और हठात् वे मानिनी आँखें, मानस्तम्भ पर जा टिकीं । तो हट न सकीं। कुछ ऐसा देखा, जिसमें उनके सारे स्वप्न एक साथ मूर्त दिखाई पड़े। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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