________________
अंधियारी खोह के पार
राजाधिराज बिम्बिसार श्रेणिक अपनी पट्टमहिषी चेलना के साथ, अपने 'त्रिभुवन-जयी हाथी पर आरूढ़ हैं। विपुलाचल के समवसरण में जाने के लिए, विशाल शोभायात्रा धीर गति से चल रही है । सुवर्ण-मीना खचित अम्बाड़ी में, मरकत-मुक्ता के छत्र तले. सम्राज्ञी के कन्धे पर कोहनी टिका कर, सम्राट एक घुटने के बल सिंह-मुद्रा में आसीन हैं। निगाह के पार तक चली गयी अपनी चतुरंगिनी सेना पर उन्होंने, धनुष-सन्धान के तेवर के साथ दृष्टिपात किया । और अपने इस वैभव और प्रताप के आगे, उन्हें क्षण भर को विपुलाचल का समवसरण फीका जान पड़ा।
सम्राट अपने जाने तो, अपने तमाम ऐश्वर्य के साथ भगवान महावीर के दर्शन को ही जा रहे हैं। पर यह मुद्रा दर्शनार्थी की नहीं, जिज्ञासु और मुमुक्षु की नहीं । यह भंगिमा एक विजयोन्मत्त आक्रमणकारी की है । चतुरंग सेना लेकर यह पराकान्त योद्धा, मानो अपने चरम शत्रु और अंतिम भूखंड पर चढ़ाई करने को निकल पड़ा है।
त्रिभवन-जयो' हाथी के आगे तीन खंडे रथों की एक श्रेणी चल रही है । इन रथों की रत्न-छाया तले मगधेश्वर की अनेक महारानियाँ, उप-पत्नियाँ
और वल्लभाएँ विपुल सिंगार-सज्जा के साथ बिराजित हैं । उनके आगे, गुंजान जंगलों में संगीत से वशीभत किए गए, अनेक दुर्वार हाथियों की कतारें झूम रही हैं । उन पर अभय राजकुमार, मेघकुमार, वारिषेण, हल्ल-विहल्ल आदि सम्राट के प्रमुख राज-पुत्र और राज-पुत्रियाँ आरूढ़ हैं । शेष हस्तियों पर मगध के चोटी के धर्नुधर, कोटिभट योद्धा, सेनापति, सामन्त, शिरोमणि श्रेष्ठि और कई मन्त्रीश्वर आसीन हैं।
आदि वेदकाल से ही सुमागधी तटवर्ती मगध देश सम्राटों की स्वप्नभूमि रहा है । यही वेदों का ऋषि-चरण चारित कीटक जनपद है। राजत्व
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org