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प्रतिपदा का सुवर्णाभ चन्द्र मण्डल, आज की सन्ध्या में खेलना के वातायन
पर उतर आया है ।
'चेला, आज तुम्हें पहली बार पहचाना ! '
'अपने देवता को आज पहली बार मैं अन्तिम रूप से पा गयी !
'मुझे भीतर ले चलो, आत्मन्
''
'चलो मेरे नाथ, विपुलाचल के शिखर देश पर, अनन्त शयन हमारी प्रतीक्षा में है !'
दिगन्त वाहिनी हवा में जाने कैसी केसर महक रही है ।
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