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________________ १२९ महाराज ने उमग कर, चाँद को आरसी की तरह आसमान के आलय पर से उतार लिया, और उसमें अपना चेहरा निहारने लगे । देख कर उन्हें अपने आप पर ही प्यार आ गया । अस्ताचल पर. विशाल भामंडल सा चन्द्रमा निर्वाण की तट-वेला की ओर तेज़ी से बढ़ रहा था । द्वाभा में छिटकी बहुत ही सूक्ष्म आँचल सी चांदनी में, मगध की महारानी चेलना, अपने 'सहस्त्रार' नामा रथ का स्वयं सारथ्य करती हुईं, महाराज बिंबिसार को 'सम्यक उपवन' में विहार कराने ले जा रही हैं । पारिजात फूलों का भीना भीना परिमल, ब्राह्मी वेला की संजीवनी हवा में अनजान गहराइयाँ खोल रहा है । ... 'सम्यक उपवन' के तमाल-कुंज की घनी छाँव में केवल एक नीली तारिका की अकेली किरन खेल रही है । वैशाली की वैदेही के घने कुंतल - पाश में वह भी अचानक खो गयी । इस सुरभित अन्धकार की जामुनी आभा में डूब कर श्रेणिकराज ने चेलनी के वक्ष पर से सर उठाया। पूछा प्रिया ने : 'कस्तूरी मिली •?' 'मिलकर भी वह तो फिर-फिर हिरन हो जाती है, चेला । तुम्हारी लीला अपरम्पार है । पा कर भी तुम्हें पा नहीं सका । तुम्हारे अणु-अणु में रमण करके भी, तुम्हें जान नहीं सका । कमल की पाँखुरी पर ओस-बिन्दु ठहर नहीं पाता है। तट की रेती को छल कर समुद्र फिर-फिर अपने क्षितिज में विलय हो जाता है ।' 'तो आओ प्रियतम, 'अन्तर - मणि' सरोवर में जल-क्रीड़ा करें चन्द्रमा अस्ताचल की घाटी में उतर गया । 'अन्तर-मणि' सरोवर के. चारों ओर घिरी तमाल की वनाली में रात का आख़री पहर जाते-जाते ठिठक गया है । आज की भोर उगने वाला सूरज, इस घड़ी विदेह - राजबाला चेलना की कंचुकी में बन्दी है । चिदम्बरा आज यहाँ दिगम्बर के साथ रमण करने आयी है । 'अन्तर- मणि' सरोवर के नीलमी जलों में वसन तरल से तरलतर होते हुए, जाने कब आपो आप ही उतर कर अपने आप में लीन हो गये । निग्रंथ वैदेही की बाहुओं में शरण खोजते से श्रेणिकराज एक शिशु की तरह ढुलक पड़े । • और चेलना की अन्तिम कंचुकी के बन्द तोड़ कर पूर्वाचल .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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