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________________ १२४ 'घोर अमंगल हो गया, देवता । महायोगी यशोधर की समाधि में आघात पहुँचा कर तुमने जनम-जनम के लिये अपना ही घात कर लिया। तपस्वी के रक्षक देवता महासर्प को मार कर उनके गले में डाल दिया ? तुमने अपने लिये नरकों के द्वार खोल लिये, स्वामी ! इस पाप का पृथ्वी पर कोई प्रायश्चित सम्भव नहीं। कर्म-विधान के परम नियम को अटल देख रही हूँ, आँखों आगे । हाय नाथ, मैं · · · मैं तुम्हें कैसे बचाऊँ, कहाँ छुपाऊँ ?' ‘कैसे घोर अज्ञान में तुम जी रही हो, देवी । वह धूर्त श्रमण, मेरे पीठ फेरते ही, उस सर्प को दूर फेंक, कहीं चम्पत हो गया होगा, कभी का। किस भ्रांति में पड़ी हो, महारानी !' . _ 'यह त्रिकाल सम्भव नहीं, मेरे देवता । काश, वातरशना जिनों के तपस्तेज को तुम पहचान सकते ! . . ' प्रत्यक्ष मेरी आँखों आगे, वे क्षमा-श्रमण अपनी जगह अटल हैं। और वह सर्प उनके गले में वैसा ही अविचल है । और · · · और · · सहस्रों चीटियाँ मृत सर्प पर छा कर, उन योगीश्वर के शरीर को चलनी किये दे रही हैं। · · · आह, आह, असह्य है, असह्य है, अनुकम्पा के अवतार उन महा तपस्वी पर होने वाला यह उपसर्ग . . . !' ___ और चेलना फूट-फूट कर रोने लगी। और गुड़ी-मुड़ी हो कर फ़र्श पर पड़ रही । सम्राज्ञी की सिसकियों से महाराज पसीज उठे। बोले : __ 'तो चलो, देवी, हम इसी क्षण चम्पारण्य को प्रस्थान करें। स्वयम् चल कर देखो, और अपने भ्रम से मुक्त हो लो। तुम्हारी यह ग्रंथि सदा को कट जाये, और हमारे बीच की दीवार टूट जाये ! ...' ___ 'चलो, चलो मेरे नाथ । और देखो प्रत्यक्ष, कि कौन भ्रम में है ? चेलना के सत् की अन्तिम परीक्षा हो जाये।' मध्याह्न की प्रखर धूप में योगिराट् यशोधर उस स्तनाकार तप्त चट्टान पर अविचल समाधिस्थ हैं। मृत काल-सर्प वैसा ही उनके गले में पड़ा है । और शत लक्ष चींटियों से उनका समस्त शरीर आच्छादित है। देखकर श्रेणिक स्वयम् स्थाणु की तरह अचल हो रहा । जैसे काठ मार गया हो । और उसके भीतर जमा वज्र अनायास ही गल-सा आया । अपने बावजूद, अपने को भूल कर, वह मुनीश्वर के चरणों में ढलक पड़ा । उसके माथे से माथा सटा कर चेलना भी ढलक पड़ी। अपने वेदना से विदीर्ण होते वक्ष और हृदय से Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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