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. १२३ सम्राट ने मापा खो दिया। वह धमक कर सर्प पर टूट पड़ा। और उसके कनों को अपनी ठोकरों से हताहत कर, उस महानाग के विशाल डील को उसने अपने पैरों से रौंद कर कुचल दिया। फिर एक भयंकर अट्टहास करके उसने उस मृत सर्प को निश्चल योगासीन मुनीश्वर के गले में डाल दिया।
मुनि ने कोई बचाव न किया । वे अप्रभावित और अकम्प, मानो वह चट्टान और सारा जंगल हो रहे । · · पर राजा को कहीं विजय की गहरी तृप्ति अनुभव हुई। कालसर्प को उसने कुचल कर मार दिया। और महावीर के अग्रज, तवा चेलना के गुरु को उसने मृत सर्प की माला पहना कर, सदा के लिये समाप्त कर दिया । . . जिनों का वंशोच्छेद हो गया। .
और सम्राट को लगा कि उसका लक्ष्य कहीं सिद्ध हुआ है। वह जीत गया है। बह सारे जंगल, प्रकृति और सृष्टि को पराजित कर आया है। आज तक के बजित अरण्य-राज्य की नीरन्ध्र निस्तब्धतागों को मानो उसने भेद दिया है। मोर मानो पाताली शंषनाग की उसने सदा के लिये हत्या कर दी है। चेलना और महावीर के दुर्ग का उसने भंजन कर दिया है। ___.. और उसका जी चाहा, कि वह फिर लौट कर मगध पर, और ससामरा पृथ्वी पर राज्य करे।
लौट कर सम्राट सीधा राजगृही नहीं आया। गंगातट के सीमान्त-वर्ती महलों और उद्यानों में तीन दिन अपनी विजय का महोत्सव मनाता रहा। चौथे दिन सुबह उठते ही, महाराज ने अनुभव किया, कि जब तक चेलना उनकी विजय के इस सम्वाद को उन्हीं के मुंह से न सुन ले, तब तक उनकी विजय पर मुहर नहीं लग सकती।
... सम्राट ने राजगृही पहुंच कर सहसा ही, चेलना के मुद्रिट कपाटों पर दस्तक दी। सम्राज्ञी ने वह दस्तक पहचान ली। रुद्ध द्वार खुला । मुक्त कुन्तल, उज्ज्वल वेशी तापसी जैसी महारानी ने सम्मुख हो कर सम्राट की बलायें लीं। और उनके चरणों में नम्रीभूत हो गई । सम्राट खिलखिला कर हँस पड़ा। फिर रानी के केश-कुन्तलों से खेलते हुए, उसने उपहास के स्वर में चम्पारण्य में घटित अपनी पराक्रम-कथा कह सुनाई।
सुन कर चेलना का रोंया-रोंया रो माया । वह गम्भीर रुदन में फूट पड़ी। फिर भयार्त, कम्पित आवाज़ में बोली :
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