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राजा स्तब्ध हो रहा । योगिराट् यशोधरः . . ? यह नाम कितना परिचित है ! · · ओ, याद आया । चेलना के पार्वानुगामी गुरु, लिच्छवियों के कुल-गुरु ! महावीर के धर्म-पूर्वज । अद्भुत है यह सुयोग। श्रेणिक को अपना सम्पूर्ण अखेट एक ही जगह उपलब्ध हो गया । जंगल की इस चट्टान पर । जिनों के वंशोच्छेद का ऐसा एकाग्र संयोग इस अरण्य के सिवाय और कहाँ मिल सकता था।
'सावधान, ओ धूर्त योगिराट् । देखू तेरे तप का प्रताप ! सैनिको, हमारे ये पाँच सौ शिकारी कुत्ते इस मुनि पर छोड़ दो। अविलम्ब आज्ञा का पालन हो !'
इस क्रूरता से सैनिक दहल उठे। उनकी हिम्मत न हुई, उस निर्दोष, निरपराध बालकवत् योगी पर अपने हिंसक कुत्ते छोड़ देने की । सम्राट् मक क्रोध से पागल-सा हो गया । सैनिकों को उसने लातों से खदेड़ दिया । और एक सैनिक के हाथ से बल्लम ने कर हुंकारता हुआ, वह उन कुत्तों के झुण्ड पर टूट पड़ा। और उन्हें बल्लम की नोकों से कोंच-कौंच कर, बलात् मुनिराट पर दौड़ा दिया। खूखार कुत्ते एक साथ पंजे उठा कर, चीतों की तरह गुरतेि हुए मुनि पर टूट पड़े।
.. लेकिन यह क्या हुआ, कि अगले ही क्षण वे कुत्ते मुनि के चारों ओर मंडल बाँध कर स्तम्भित, समर्पित से रह गये। उनके आक्रमण को उठे खूनी पंजे, जुड़े हाथों की तरह वन्दना की मुद्रा में उठे दिखाई पड़े । और विपल मात्र में ही मानो वे दण्डवत करते-से योगी के चरणों में लोट गये । आरति और प्रीति की सुबकियों और कराहों के साथ बे मुनीश्वर के अंगों से लिपट कर रभस करने
लगे।
__ श्रेणिक के हृदय पर जैसे किसी ने एक बूंसा मारा हो। वह पराहत, म्सान, पराजित देखता रह गया। उसे दारुण निराशा का चक्कर-सा आ गया।
... ओह, इस तापस ने अपनी किसी तपो-ऋद्धि से इन कुत्तों को भी स्तम्भित कर दिया है। मेरे चारों ओर जादूगरों और विद्याधरों का मायावी मंत्रजाल फैला है। • • ठीक है, अब मैं स्वयम् ही, इस नग्न साधु की छाती बींध कर, इस खेल को सदा के लिये खत्म कर दूंगा · · · !'
और राजा ने एक सैनिक से चण्ड धनुष छीन कर उस पर बाण चढ़ा दिया। और पूरी ताक़त से तीर को कान तक खींच कर ज्यों ही मुनीश्वर की छाती में भोंक देने को हुआ, कि एक फणिधर महासर्प धरती में से प्रस्फोटित हो कर फुफकार उठा । वह प्रतिमायोग में स्थिर योगी और राजा के बीच उत्थायमान हो अपनी फणाएँ फटकारने लगा।
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