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________________ . १२१ कारवाँ चल रहा है। और सबसे पीछे आ रहे हैं, पाँच सौ शिकारी कुत्ते । सम्राट के ठीक पीछे उनका अश्व चल रहा है। राजेश्वर कारणहीन विजयोन्माद से झूमते, एक अजीब नशे में लड़खड़ाते-से, पथहीन अरण्यानियों के झाड़ीझंखाड़ों को गूंधते, फान्दते पार कर रहे हैं। · · सदियों की सुप्त प्रकृति राजा के पैरों के धमाकों से जाग रही है। · · ·और हठात् उन धमाकों को किसी ने भंग कर दिया। चलते-चलते सम्राट ठिठक कर देखता रह गया । वन के एक बहुत भीतरी नीरव एकान्त में, कोई पुरुष प्रतिमावत् निश्चल बैठा है । एक स्तन की तरह उभरी चट्टान पर वह सिद्धासन में अवस्थित है । ऊपर के खुले आकाश की तरह ही वह नग्न और निरावरण है। मानो उसी का वह एक मानुषिक मूर्तन है। जिस प्रकृति के बीच वह बैठा है, मानो उसी का वह एक उदभिन्न व्यक्तिकरण है । या वह प्रकृति उसी के भीतर से प्रसारित है । लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, शाखाएँ, सारा वन मानो उसके शरीर पर चित्रसारी की तरह उभर रहा है । श्रेणिक के भीतर एक लपट-सी लहक उठी : 'ओ, महावीर ? तुम यहाँ भी मौजूद हो? तुम सर्वत्र मेरा पीछा कर रहे हो ? एक और महावीर, एक और महावीर, एक और · · ·उससे बाहर, उससे परे, क्या सत्ता सम्भव नहीं. . . ? नहीं, श्रेणिक को यह मंजूर नहीं। सत्ता दो नहीं, एक ही हो सकती है । या तो उसकी अपनी, या फिर किसी की नहीं । 'महावीर, सावधान् । श्रेणिक बिम्बिसार आज दो टूक फैसला करके दम लेगा। चेलना के दो स्वामी नहीं हो सकते । पृथ्वी के दो अधीश्वर नहीं हो सकते । महावीर, तुम या मैं ? शिकारी श्रेणिक के लिये, इस जंगल और जगत की हर शै केवल आखेट है। ले झेल, मेरा बाण, या मेरी प्रभुता स्वीकार कर . . .!' हठात् जंगल के मर्म में से एक आवाज़ सुनाई पड़ी : 'सावधान्, श्रेणिक ! योगिराट् यशोधर यहाँ तुरियातीत समाधि में लीन हैं। प्रशम, संवेग और समत्व के शिखर पर वे आरूढ़ हैं। वे महावीर के ही एक पूर्वाभास और प्रतिरूप हैं। वे सदा त्रिकाली योग धारण किये रहते हैं । मुनियों के बीच ये मुनीश्वर हैं। तप के ये हिमाचल हैं । असंख्याती पर्यायों का ये युगपत् ज्ञान कर रहे हैं । · · आँख खोल कर देख श्रेणिक · देख · देख...' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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