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कोई आपत्ति नहीं । उनकी नन्हीं-नन्हीं निर्दोष आँखों में, यह किन अचीती आँखों की मोहन माया है ।
जंगलों में चौकड़ी भरते हिरनों के पीछे वह दौड़ता है, कि उन्हें पकड़ कर उनका टेंटुआ मसक देगा । पर वे हिरन हैं कि स्वयम् ही उसकी ओर दौड़ आते हैं । उसे उचका कर अपनी पीठों पर चढ़ा लेते हैं । या उसे सम्मुख ले अपनी दोनों टाँगें, उसके गले में डाल उसकी आँखों में अपनी भोली आँखें गड़ा देते हैं । • ओह, उस एकमेव मृग नयनी की कजरारी आँखों का वही पारदर्श भोलापन, वही सरलपन । वही समर्पण । वही अनाहत रक्तदान और आत्मदान की चाह : उन हिरनों की कस्तूरी आँखों में ।
राजा की बुद्धि और समझ ने जवाब दे दिया है । वह स्तब्ध है । उसे अपने को रखना असह हो उठा है। निर्मन और निर्विचार वह केवल देखने को अभिशप्त है ।
• कि हठात् चार-पाँच खरगोशों की एक टोली, किसी झाड़ी में से निकल कर उसकी ओर दौड़ी आ रही है । सम्राट ने उत्तेजित हो कर ज़ोर से एक पैर पटका । लेकिन वे नन्हें प्राणि जरा भी भयभीत न हुए। उफ्, उससे ये क्षुद्र प्राणी तक भयभीत नहीं होते ? जिस चक्रवर्ती के वीरत्व और प्रताप की धाक महाचीन से लगा कर, पारस्य और यवन देश ग्रीस तक व्याप्त है, उससे कोई डरता तक नहीं, इस बीहड़ वन के राज्य में ?
राजा मन ही मन बेहद दैन्य और आकिंचन्य अनुभव करने लगा । वह निढाल और निरुपाय हो कर एक चट्टान पर बैठ गया । वे खरगोश निधड़क उसके शरीर पर चढ़ आये । उसकी गोद और बाहुमूलों में दुबक रहे । उसे दुलारने और पुचकारने से लगे । उनकी लोमश मसृण काया के गर्म स्पर्शो से राजा का जमा हुआ खून बह आया । उसे अपने रोमों में एक अजीब पुलककम्पन अनुभव होने लगा। एक अनूठी कोमलता के दबाव ने उसे चारों ओर से आवरित कर लिया ।
• और यह क्या, कि उसकी बाँहों और कन्धों पर तोते आ बैठे हैं । उसके विपुल केशों के छतनार में बैठ कर मैना गा रही है। सौन्दर्य, कोमलता, प्यार के इस साम्राज्य में वह अपने को बहुत बेबस और निरीह पा रहा है ।
लेकिन अगले ही क्षण सम्राट को इसमें एक आख़िरी हार का अनुभव हुआ । प्रकृति ने पुरुष को इतना निःसत्व और अधीन कर लिया ? ओ नारी, तुझे
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