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पड़ने को होता है। कोयल नाम पूछती है। पपीहा पीहू-पीहू की रट लगा देता है । फूलों के खुलते अन्तःपुरों में, सारा जंगल चिड़ियों में गाता है ।
और राजा को लगा कि उसका आक्रमण नदी -सुन्दरी की बहती जंघाओं में बबूला हो कर फूट पड़ा है । कहीं कोई प्रतिरोध नहीं । कहीं नहीं हैं वह वज्र कठोरता, जिससे जूझे बिना, टकराये बिना, जिस पर पछाड़ खाये बिना उसे चैन नहीं ।
यहाँ का सब कुछ अविकल सुन्दर है । अपार और नित्य सुन्दर । रूप और लावण्य यहां सीमाहीन हो कर बिखरा है । सम्राट को असह्य है यह सौन्दर्य । उसे प्रकृति और सृष्टि के इस अनन्त सौन्दर्य से ईर्ष्या है । भीषण शत्रुता है । उसका वश चले तो सौन्दर्य मात्र को वह लोक में से पोंछ देना चाहता है क्योंकि यह सारा रूप और सौन्दर्य उस एकमेव नारी का है, जिसके बिना वह जी नहीं सकता ।
'... "मेरे सामने से हट जाओ, चेलना । चप्पे-चप्पे पर तुमने अपने को बिछा कर मेरी राह हुँध ली है। मैं पर्त-पर्त तुम्हें बींध कर निःशेष कर देना चाहता हूँ । पर यह क्या, कि मेरे हर आघात के उत्तर में तुम अनन्त होती चली जाती हो । तुम मेरे हर क्रोध को काम में बदल काम के हर कषाघातको तुम अपने अबाध और अगाध देती हो ।
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• • आखेट, आखेट, आखेट । मैं शिकार करूँगा । मैं मारूंगा । मैं हत्या करूँगा । मैं खून बहा दूंगा । 'किसका ?' 'तुम्हारे सौन्दर्य के इस विराट् राज्य का । एक-एक लता, गुल्म, पशु, पंबी, जल, थल और आकाश के इन सारे रम्य प्रदेशों को मैं अपने नाखूनों से चीर कर लहूलुहान कर दूंगा ।' और सम्राट पंजे तानकर, आकाश पर तमाचे मारता है। हवा पर लातें फेंकता है । और दुर्दान्त व्याध की तरह प्रकृति के इस असीम सौन्दर्य - राज्य पर टूट पड़ता है । इसका आखेट करने के लिये । ...
देती हो । और मेरे
मार्दव में व्यर्थ कर
वह वृक्षों को उखाड़ने लगा, तो बिना ही ज़ोर लगाये वृक्ष उखड़ कर जैसे उसके कंधों पर मित्र की तरह झूम उठे । लताओं को नोच पाये, उससे पहले ही वे आप ही प्यार से घायल हो उससे लिपट गई। रंग-बिरंगी नन्हीं-नन्हीं चिड़ियों को पकड़ कर मसल देने को झपटा, तो वे वन्याएँ खुद ही किलक कर उसके तीखे पंजों पर आ बैठीं । उसकी बाँहों, कन्धों और केशों पर बैठ कर उस पर यों बलि हो गईं, कि जो चाहे उनका करे, नोचे, मसले, खा जाये, उन्हें.
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