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बदलते ही दोपहरी बीत जाती है। विजेता को विश्राम कैसा ? अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों की चुनौती सामने मण्डलाती है । और वह पृथ्वीपति, पृथ्वी के गर्भ को रौंदता हुआ, अभेद्य जंगल को भेदने के लिये, उसमें धँस पड़ता है ।
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• और यह क्या, कि रात गहरी होते ही, किसी मैदानी चट्टान पर कोई तम्बू गड़ा दोख जाता है। उसके ऊपर टँगा है आकाश-दीप । भीतर आलोक है, उजली सुख- शैया है। कितनी तत्परता से यह जंगल उसकी रक्षा और सेवा कर रहा है! लेकिन उस सुख - शैया पर लेटते ही सम्राट आशंकित हो उठता है । यह सब मानुषिकः नहीं, दैविक है ! ज़रूर कोई षड़यंत्र उसे चारों और से घेरे हुए है । वर्ना वर्ना, इस मानुषहीन निर्जन में सभ्य जगत के ये सुख-साधन क्यों कर हो सकते हैं ? नहीं, यह मेरी विजय का प्रताप नहीं, यह एक विराट् कारागार है; जिसके चक्राकार परकोटों का अन्त नहीं । इस क़ैदखाने को भेदना होगा। लेकिन कैसे ? बाहर टकराने और तोड़ने को कोई दीवार तो हो !
सम्राट का गुप्त संरक्षक - सैन्य, जंगलों की ओट रह कर, हर समय उनका पीछा करता रहता है । वही अपने स्वामी के लिये ठीक समय पर भोजन-शय न तथा अन्य जीवन-साधन उपस्थित कर देता है । पर वे अनुचर देखते हैं, कि उनका सम्राट खा कर भी खाता नहीं, सो कर भी सोता नहीं। बैठ कर भी बैठता नहीं । अशान्त, परेशान, वह तीर खाये सिंह की तरह इन वीरानों में दौड़ा फिरता है । पर वे कर ही क्या सकते हैं। अपने कर्तव्य के आगे उनकी गति नहीं । यह राजेश्वर अपना ही सगा नहीं, तो दूसरे की क्या बिसात ।
सावन को महीना है | चाहे जब मन्द्र गर्जन के साथ बादल घिर आते हैं । और पहरों समरस भाव से झड़ियाँ बरसती रहती हैं। श्रेणिक उनमें भींजता चला जाता है, कि शायद उसके भीतर की रात-दिन धधकती भट्टी शान्त हो जाये । वह गल जाये, शीतल हो जाये । बह जाये । लेकिन नहीं, वैसा कुछ नहीं होता । वन के प्रगाढ़ पल्लव-परिच्छद में, जलधाराएँ मर्मराती रहती हैं । उनमें कैसी मोहक, मार्मिक, गोपन फुसफुसाहट है । राजा मोहाकुल हो उठता है । पल्लव-जालों की भीतरमा उसे खींचती है । मानो वहीं कहीं कोई मार्दवी शैया है । ओह, वह उसे मूर्च्छित कर देगी । नहीं, यह नहीं होगा । वह सृष्टि की अन्तिम कोम - लता से भी हार नहीं मानेगा ।
और रात में उद्दण्ड बरसाती हवाएँ चलती हैं । सारा वनस्पति-राज्य हहर उठता है । दारुण गर्जन के साथ कहीं बिजली टूटती है । विश्व-विजेता चक्रवर्ती दहल उठता है । वह किसी ऊष्म बाहुमूल की अतल मृदुता में छुप जाना चाहता
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