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________________ 'अपने अहंजन्य मोह-ममकार, राग-द्वेष के कषाय से हम हर क्षण इस यज्ञ को भंग करते हैं । हम अनुपल सत्ता के स्वभाव को अपने स्वार्थ-राग से विकृत करते रहते हैं । हम हवा, पानी और अन्तरिक्षों पर भी अपने स्वामित्व और अधिकार की मोहर मारना चाहते हैं । हम नदी को, माँ के दूध को, सागर के रत्नकोष को, अपने ख़ज़ाने में बन्द करते हैं । हम करोड़ों को वंचित कर और अभाव में जिला कर, सारे जगत के ऐश्वर्य को अकेले भोगना चाहते हैं । हमने पृथ्वी मां के स्तनों को बलात् उसकी असंख्य सन्तानों के हाथों और होठों से छीन कर, उसे अपने ठेके और भोग की वस्तु बना लिया है । अन्य को वंचित किये बिना जीना हमारी आदत में नहीं । यह अहंकार-ममकार ही, हर समय महासत्ता के इस 'परस्परोपग्रह जीवानाम्' यज्ञ को भंग कर रहा है।' 'यह यज्ञ कैसे अभंग हो सकता है, भन्ते ?' ___ 'फिर कहता है, वही सर्व के साथ स्वभावगत सम्वाद में जी कर । वाणिज्य और राज्य की आसुरी शक्तियाँ उस यज्ञ को सतत भंग करने में लगी हुई हैं । वाणिज्य और राज्य को समाप्त हो जाना पड़ेगा । स्वयम् यज्ञपुरुष ही, अपनी निरन्तर आत्माहुति से इस बुनियादी बलात्कार की जड़ों को निर्मूल कर सकता है । उसके आत्मदान का प्रवाह चराचर को आप्लावित कर दे, तो अनायास विप्लव हो जाये । सिंहासन उलट जायें, और ख़जाने खुल कर रास्तों पर बह जायें। सब सब का हो जाये। 'यह शक्य हो जाये, गौतम, तो व्यक्ति, समाज, राष्ट्र से लगा कर समस्त भूमण्डल, इतिहास तक के सारे वैषम्य और संघर्ष, आपोआप समाप्त हो जायें।' __ "त्रिलोकीनाथ यज्ञपुरुष सम्मुख हैं । स्वयम् जातवेद, परम हुताशन जगत में चल रहे हैं। लोक और इतिहास उनके धर्म-चक्र प्रवर्तन की प्रतीक्षा 'तथास्तु, गौतम !' 'हे युगन्धर तीर्थंकर प्रभु, ये असंख्य संसारी जन, धर्म-मार्ग की कोई स्पष्ट रेखा सम्मुख पाना चाहते हैं । सर्वजन इस विचार को आचार में कैसे लायें, प्रभु । उसका कोई सहज मार्ग ?' ___ 'यह विचार नहीं, साक्षात्कार है, गौतम । विचार वैकल्पिक और अनुक्रमिक होता है । साक्षात्कार आकस्मिक, अविकल्प और सामग्रिक होता है। शास्ता विचार नहीं बोलते, साक्षात्कार बोलते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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