SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'आर्य गौतम, महासती चन्दन बाला प्रवर्तिनी के सिंहासन पर आसीन हों!' प्रभु के रक्त कमलासन के बायीं ओर की परिक्रमा में भगवती का जलकान्त सिंहासन प्रस्तुत हुआ । दायीं ओर विराजमान हैं, पट्टगणधर भगवद्पाद इन्द्रभूति गौतम । गौतम विनीत, नम्रीभूत भाव से भगवती का स्वागत करने गंन्धकुटी के सोपान उतर आये । इन्द्रेश्वरी शची, देवी चन्दन बाला को बड़े ही गौरव-सम्भ्रम से उठा कर, उन्हें अपने वक्ष का और बाँह का अवलम्बन देतीं, ऊपर ले आई।· · ·और विपल मात्र में असंख्य आँखों ने देखा : भगवतो चन्दन बाला प्रवर्तिनी के सिंहासन पर आसीन हैं। देव दुंदुभियाँ घोषायमान हुईं । शंख, घंटा, वाजिंत्र सहसा ही बज उठे। अछोर जयध्वनियाँ होती चली गईं : महासती चन्दनबाला जयवन्त हों जगदीश्वरी चन्दनबाला जयवन्त हों परमेश्वरी महाशक्ति जयवन्त हों त्रिभुवन-मोहिनी माँ जयवन्त हों · · ·और हठात् फिर नीरवता व्याप गई । 'शास्ता के साथ संन्यासिनी ही रह सकती है, गौतम । देवी चन्दन बाला संन्यस्त हो कर पिच्छी कमण्डलु धारण करें।' 'भगवती, और संन्यास ? वे माँ तो सर्वातीत हैं ही, प्रभु।' 'संन्यास बिना नूतन विन्यास सम्भव नहीं, गौतम ।' 'सो कैसे, भन्ते महाप्रभु ?' 'विगत और वर्तमान के सारे संस्कार-बन्धनों को तोड़े बिना नव्य जीवन की ऊषा कैसे फूट सकती है ? भगवान स्वयम् संन्यस्त हुए, गौतम, ताकि लोक में आचार और मुक्ति का राजमार्ग प्रशस्त हो। धर्म-प्रस्थापना के लिए चारित्र्य-चक्रवर्ती अर्हत् स्वयम्, चारित्र्य में लीला भाव से विचरते हैं । लोक में मुक्तिपथ की उज्ज्वल रेखा खींचने के लिए, भगवती को संन्यस्त होना पड़ेगा।...' 'लेकिन भगवन्, वैदिक आर्यों की परम्परा में, स्त्री के लिये संन्यास वर्जित है।' 'शास्ता सारे जड़ीभूत भेदों और निषेधों को तोड़ने आये हैं । वे मृत हो चुकीं, पुरातन मर्यादाओं का भंजन करने आये हैं। वे नूतन देश-काल अनुसार, नव्य मर्यादाओं का सृजन करने आये हैं । क्या सावित्री सविता की ही उत्तरांशिनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy