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विभिन्नता नहीं । अभिव्यक्ति, भीतर की तात्कालिक पुकार और जिज्ञासा के अनुसार होती है।'
'किन्तु परात्पर सदाशिव महावीर तो एकाकी पुरुष हैं । वे एकल विहारी हैं । वे नारी-संग नहीं स्वीकारते । भवानी नहीं स्वीकारते। तो वे परम पुरुष यहाँ कैसे व्यक्त हों, इस सृष्टि में ? संचारिणी क्रिया-शक्ति नारी के बिना, वे अकेले धर्म-चक्र का प्रवर्तन कैसे करें, स्वामिन् ?'
महावीर एकल और युगल, नित्य एक साथ है, गौतम । वह अर्द्धनारीश्वर है। उसके भीतर बैठी उसकी एकमेव नारी, ठीक समय पर सदेह प्रकट हो उठेगी।'
'प्रवत्तिनी भगवती भगवन् ?' . 'अभीप्सा कर, गौतम !' 'मा के बिना सृष्टि कैसे हो, हे लोकालोक के परम पिता?' श्री भगवान ने कोई उत्तर न दिया।
प्रकम्पित महाबिन्दु अपनी अस्मिता में लीन हो गये । कला नाद में, नाद बिन्दु में विश्रब्ध हो गये!
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