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सोलोमन की खदानों का शुद्ध सुवर्ण मगध की महारानियों के नूपुरों में ढल कर अपनी चरम धन्यता प्राप्त करता है। नील नदी के गोपन जल-गों के रत्नों ने मगधेश्वरी चेलना के वक्षहार की कौस्तुभ-मणि में जड़ित होकर, मेरे आलिंगन को ग्रह-नक्षत्रों की निगढ़ ज्योतियों से भास्वर कर दिया है। ताम्रलिप्ति और हंसद्वीप के अलभ्य हीरों ने मगधनाथ के मुकुट में दीपित होने के लिये भूगोल और खगोल की परिक्रमा की है। राजगृही के रत्न-पण्यों में ही कालोदधि के दुर्लभ मुक्ता-फलों का मूल्यांकन सम्भव होता है।
समस्त जम्बूद्वीप के धर्म, ज्ञान, तीर्थक्, ज्ञानी, तपस्वी, रासायनिक, वैज्ञानिक राजगृही के चैत्य-काननों में आ कर अपने ज्ञान-विज्ञान की चरम उपलब्धियों को प्रकाशित करते हैं। सुदूर एथेंस के पायथागॉरस और हिराक्लिटस जैसे दुर्द्धर्ष तत्वज्ञानी श्रेणिक की गति-विधियों के आधार पर संसार का मर्म-चिन्तन करते हैं और अपने दर्शनों के अन्तिम निष्कर्ष निकालते हैं। वेदों के यज्ञ-पुरुष और उपनिषदों के ब्रह्मज्ञानी ऋषि वैभार पर्वत की अगम्य गुफाओं में विश्व-रहस्य के अन्तिम छोर खोज रहे हैं। हिमवान की अन्तरिक्षवेधी चूड़ाओं ने विपुलाचल के शिखर पर अपने मस्तक ढाल दिये हैं।
इस प्रकार पहले दिन से आज तक के अपने जीवन-इतिहास में जब निगाह दौड़ाता हूँ, तो पाता हूँ कि समकालीन विश्व की बड़ी से बड़ी सम्पदा, सत्ता, व्यक्मित्ता भी श्रेणिक से बड़ी, ऊंची और ऊपर हो कर नहीं रह सकी है। मौजूदा जगत की सारी ही श्रेष्ठताएँ और विभूतियां उसके व्यक्तित्व के प्रभामण्डल की किरणें हो कर रह गई हैं। आदि से आज तक श्रेणिक ने किसी से छोटा होना नहीं जाना, नहीं स्वीकारा।
.. लेकिन आज ? आज तो सृष्टि में मुझसे छोटा, कहीं कुछ नहीं 'दिखायी पड़ता। परमाणु से भी छोटा हो गया श्रेणिक ? इतना, कि दिखाई नहीं पड़ता। हर नजर से वह बाहर हो गया है। ओह, इस तरह अस्तित्व में कैसे रह जाये, कैसे जिया जाये? कब तक, कैसे ?
उत्तर दो महावीर ! तुम कौन हो, कौन हो तुम? तुम : 'तुम हो मेरे इस अवमूल्यन के उत्तरदायी । मेरे इस सत्यानाश के अपराधी । बोलो, चुप क्यों हो? तुम हो कि नहीं हो, मैं हूँ कि नहीं हूँ, कौन उत्तर दे? कौन किसी को समझाये ? समझ समाप्त है, और प्रश्न अन्तहीन होता जा रहा है।
• • • लेकिन एक अवलम्ब भीतर झांक रहा है। याद आ रहा है, अभी एक वर्ष पूर्व का वह सवेरा । तुम्हें परिव्राजन करते, कई वर्ष बीत चुके थे, वर्दमान ! उससे पूर्व कई-कई बार तुम मगध के वनांगनो और ग्रामांगनों में
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