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________________ २८० सा हो आया मेरा ललाट, जाने क्यों मृत्यु की उस चरम साक्षी में भी झुक न सका। अनम्य श्रेणिक के इस अहम् पर मेरी अनाविल आत्मा भी दहल कर कातर हो आयी। राजपिता के लालट पर मैंने अन्तिम आश्वासन की हथेली रख दी। और अपलक मेरी ओर देखती उनकी वे दोनों आँखें, दो आँसू ढलका कर निस्पन्द हो गई। ___ मन ही मन मैंने उन्हें क्षमा कर दिया था। और उसका अचूक बोध पा कर वे निश्चिन्त भाव से देह-त्याग कर गये। दैवज्ञों ने बाद में बताया, कि मेरी हथेली के स्पर्श मात्र से राजा की आत्मा उत्तम देवगति में आरूढ़ कर गयी। · · · तत्काल राज्याभिषेक के दुन्दुभि-घोष, तुरहियाँ, घंटारव और शंखनाद गुंजायमान हो उठे। · · · सिंहासन पर आरूढ़ होते समय अनुभव हुआ, कि मैं सिंहासन के पास नहीं आया हूँ, स्वयम् सिंहासन मेरे पगधारण को प्रस्तुत हुआ है। उधर मेरे पीछे नन्दश्री ने दुर्वह गर्भ धारण किया। एकदा उसे ऐसा दोहद पड़ा कि : 'मैं तुंगकाय हाथी पर चढ़ कर निकलूं, और लोक-जनों पर विपुल समृद्धि की वर्षा करतो हुई, उन्हें सुरक्षा और अभयदान से आश्वस्त करूँ।' वेणातटपुर के राजा ने बड़े उत्सव-समारोह के साथ नन्दा का वह दोहद सम्पन्न किया । यथाकाल उसके गर्भ से उदीयमान सूर्य-सा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ । नन्दश्री के दोहद-पूर्ति उत्सव के अभयदान की स्मृति में उसके पिता सोमशर्मा ने अपने दोहित्र का नाम अभय कुमार रक्खा। बरसों के पार नन्दश्री अपनी प्रथम प्रतिज्ञा को हृदय में निगूढ़ देवत् की तरह सँजोये रही। वह मानिनी सती रानीपद की भिखारिणी हो कर अपनी ओर से राजगही नहीं आना चाहती थी। मेरा प्यार भी ऐसा पर्वत की तरह अनम्य और उद्ग्रीव था, कि भीतर नन्दा के विरह में दिवारात्रि तपता रहा, पर उसे लिवा लाने या बुलाने का कोई बाह्य उपाय मुझे रुचिकर न हुआ । ऐसा लगता था कि समुद्र और पर्वत के बीच गरिमाओं की होड़ लगी थी। • 'किशोर अभय को उसके साथी-सखा उसके पिता का नाम-कुलगोत्र पूछ कर परेशान करते थे । इस रहस्य पर घर में एक गहरे मौन का आवरण पड़ा था। आखिर एक दिन अभय ने माँ को अपनी आक्रन्दभरी हठ से विवश कर दिया कि अपने पिता का परिचय पाये बिना वह जी नहीं सकता । नन्दश्री ने कहा : Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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