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एक अनन्य प्रतिभाशाली पुत्र उत्पन्न किया। इस प्रकार पुराण-प्रसिद्ध मालव की भूमिजा को बाहुबद्ध करके मैंने उसे मगध की माटी में समो देने का अकथ्य विजयोल्लास अनुभव किया ।
और अन्ततः समकालीन विश्व की शिरोमणि महानगरी वैशाली की अनंग-जयिनी बेटी चेलना को अपनी अंकशायिनी बना लाया। और यों मैंने पृथ्वी के सर्वोपरि गणतंत्र की स्वातंत्र्यवाहिनी हवा को अपने सीने में गिरफ्तार कर लिया । और आज दुर्जय स्वातंत्र्य-गर्वी वैशाली की स्वतंत्रता पल-पल मगधेश्वर श्रेणिक की तलवार तले थरथरा रही है ।
फिर भी क्या मुझे चैन आया? भीतर के भीतर में बराबर हो ऐसा अहसास होता रहा, कि चेलना समूची मेरे बाहुबंध में वध कर भी, उससे बाहर ही रह गई है। पृथ्वी और समुद्र के जाने किन अपरिक्रमायित कटिबन्धों में जाने कहाँ-कहाँ खेलने चली गयी है। उसकी आँखों की काजली गहराइयों में, पूर्व जन्मों की जाने कितनी ही दर्दीली रातों के द्वारा खुलते चले जाते हैं। उनमें इस तरह बेतहाशा खोता चला जाता हूँ. कि देहगुंफन के सारे किनारे हाथ से छटते चले जाते हैं। एक अन्तहीन आत्मविस्मृति में डूबता चला जाता हूँ। पर पार में उतर कर याद के जिस तट पर अपने को खड़ा पाता हूँ, वहाँ चेलना कहीं नहीं होती है। एक अजीब असमंजस में होता हूँ, कि यहाँ जो एकाकी उपस्थित है, वह मैं हूँ. या चेलना है, या कोई और ही है ? कोई हो, क्या फ़र्क पड़ता है।
__ तब मेरी खोज वहाँ कैसे रुक सकती थी । - उ. अचीन्हे विदेशी तटों की जल-वेलाएँ हृदय में टीस उठतीं, जिनके मुदूर गोरों में चेलना को खो जाते देखता था। · · लगता था कि यह चेलना एक नहीं, देशदेशान्तरों की अनगिनत सुन्दरियाँ एक साथ हैं। · ·और उनमें से हरेक को अपने स्पर्श की ठोस पकड़ में लिये बिना कैसे चैन आ सकता है . . ! .
___ और तब नाना देश और नाना वेश में, मेरी छुपी जल-यात्राएँ और अन्तरिक्ष यात्राएँ होती थीं। मगध, अंग, वत्स और अवन्ती के सार्थनाहों के जहाज़ों पर चढ़ कर, जानी हुई पृथ्वी के हर कटिबन्ध को परिक्रमा कर आया । हर तट की अनुपम लावण्या कुमारिका को हर लाया। मगध के उपान्त भागों में ताम्रलिप्ति, सुवर्ण-द्वीप, हंसद्वीप, मिस्र, महाचीन. यूनान और पारस्य की सुन्दरियों के अपने-अपने हर्म्य और उद्यान बन गये। · · · जाने कितनी ही माधवी सन्ध्याओं में, उन उद्यानों की स्फटिक-छनों पर अपने सपनों के साथ मन-माना खेला हूँ।
लेकिन क्या फिर भी जी की कसक को विराम मिल सका है. . . ?
याद आता है वसन्त का वह कोकिल-कूजित अपरान्ह । जब नील नदी के देश की बासिनी एक बाला के हर्म्य-उपवन में उसके साथ, पारिजात
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