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________________ - २६२ ___ 'महावीर से अधिक दर्शनीय और काम्य इस समय पृथ्वी पर क्या है, श्रेष्ठि ?' 'सावधान, देवी आम्रपाली · · !' 'मुझे सावधान करने वाले तुम कौन, ओ अजनवी ?' 'पूर्वीय समुद्रेश्वर सम्राट बिंबिसार श्रेणिक · · · !' आम्रपाली अप्रभावित, अचल, एकटक मुझे क्षणैक ताक रही । 'सम्राट का अभिवादन करती हूँ। प्रचंड सूर्यप्रतापी मगधेश्वर को मेरे पास चोरी से आना पड़ा?' 'अपनी स्वप्न-सुन्दरी के पास देश-काल में कैसे आया जा सकता है। अन्तरिक्ष-मणि में ही वह मिलन सम्भव है।' 'क्षमा करें सम्राट, यदि आम्रपाली किसी दुसरे ही स्वप्न में जी रही हो, तो आपकी अन्तरिक्ष-मणि में वह अनुपस्थित भी हो सकती है !' 'देवी का वह स्वप्न पुरुष कौन महाभाग है ?' 'संसार में आज जिससे अधिक कमनीय, कामनीय, दर्शनीय और कुछ नहीं !' 'मगधनाथ श्रेणिक का कोई प्रतिस्पर्धी नहीं हो सकता !' 'वह आपकी प्रतिस्पर्धा से ऊपर है, राजेश्वर ! वह वर्तमान लोक में एकमेव और अद्वितीय सौन्दर्य-सत्ता है !' 'उसका नाम जानने की धृष्टता कर सकता हूँ?' _ 'जो एकमेव नाम आज दिगन्तों पर लिखा हुआ है, उसे आपने नहीं पढ़ा, नहीं सुना ? आश्चर्य !' 'शायद नहीं . ।' 'उस अनन्त, अनाम को, रूप और नाम में कौन बाँध सकता है ?' एक गहरी मर्माहत, धायल खामोशी क्षण भर व्याप रही । 'आह पाली, मेरे चिरकाल के स्वप्न को तुमने बहुत निष्ठुरता से तोड़ दिया। तुमसे अधिक कोमल तो मैंने किसी को नहीं माना । अपनी अभिन्न अंकशायिनी चेलना को भी नहीं। . लेकिन तुमसे कठोर और कौन हो सकता है?' 'मेरे मन मेरे इस भाव से अधिक कोमल कुछ नहीं, सम्राट !' 'अमिया, क्या तुम नहीं जानती कि. . . ' '. · · कि श्रेणिक बिंबिसार मुझे अपनी आंखों में अंजन की तरह आंजे हुए हैं। कि मैं उनकी हर अगली सांस का कारण हूँ। . .' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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