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________________ २५१ . . . 'तूफ़ान पर आरोहरण करता रथ गंगा के तटान्त को पार कर गया। बन्द रथ के उस विचित्र सुगन्ध-निविड़ अन्धकार में मुझे एक जन्मान्तर कीसी अनुभूति हुई । चेतना के एक नये ही तट पर उतर कर मैंने अपने को नये सिरे से पहचानना चाहा । सहज स्वस्थ हो कर, मैंने रथ के अगले भाग की यवनिका को सरका दिया। पूर्णिमा का पूर्णांकार केरिया चन्द्रमण्डल उत्तरोत्तर पीताभ होता हुआ, दूरान्त की वनलेखा पर किसी सम्राट की गरिमा से उद्योतमान दिखायी पड़ा। ___ 'भन्ते आयुष्यमान, अब तो मेरी नियति की वल्गा तुम्हारे हाथ है। बताओ, यह सब क्या खेल चल रहा है ?' 'सुनो माँ, सब स्पष्ट जान लो। · कोई भरत नामक यायावर चित्रकार एक दिन अचानक, जाने कैसे सम्राट के गोपन क्रीडोद्यान में प्रवेश पा गया। उसने वैदेही चेलना का एक नग्न चित्रपट उनके सामने अनावरित किया । . . उसे देखने के बाद सम्राट कई-कई रातों पलक न झपका सके । उनकी अनमस्कता को भांपने में मुझे देर न लगी। एक दिन अवसर पा कर मैं, दबे पैरों आधी गत को उनके क्रीडोद्यान-महल के शयन-कक्ष में चुपचाप प्रविष्ट हो गया। · · देखा कि उस चित्रपट के समक्ष वे कुछ इस तरह ध्यानस्थ, आंसू सारते बैठे हैं, जैसे कोई योगी हों ।' . 'ओह, देवानु प्रिय, आश्चर्य ! एक स्वप्न में यह दृश्य मैंने भी देखा था। मानव मन की गति और शक्ति इतनी दूरगामी और सूक्ष्म भी हो सकती है, यह तो कभी जाना नहीं था। समझ गई हूँ सब, फिर भी कहो। सुनना चाहती हूँ।' __ 'मगध के सारे ज्योतिर्विद, मांत्रिक-तांत्रिक भी महाराज की मनोवेदमा की थाह न ले सके। सारे मंत्रीश्वर और आमात्य पानी भर गये। पर सम्राट के मनोराज्य की कुंजी केवल मेरे पास है, यह मैं बहुत लड़कपन में ही जान गया था। वे मेरी निर्वाक् मनोवेधक दृष्टि को टाल न सके । खुल आये मेरे सामने । मैंने उन्हें अचूक आश्वस्त कर दिया। वे प्रफुल्लित हो आये ।' · · कहते-कहते पल भर अभय राजकुमार ठिठक रहे । 'चुप क्यों हो गये, आयुष्यमान ?' 'रत्न-श्रेष्ठि के षड्यंत्र को क्या दोहराना होगा, सम्राज्ञी? सम्राट का वह चित्रपट मेरी ही तूली का खेल है।' 'कितनी विद्याएं जानते हो, भन्ते युवराज, कोई गिनती है?' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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