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________________ २२१ 'और तभी तुम चीख उठीं ?' 'मैं नहीं चीखी, मेरा गर्भ विदीर्ण हो कर चीख उठा। मेरा लाल मेरा बेटा, मेरी छाती का टुकड़ा । उसे कुछ हो गया है जरूर ! ' के वक्ष पर ढलक कर बिलबिला उठी । और मैं उठ कर अपमें स्वामी मुझे सहलाते हुए वे धीरे-से बोले : ' लगा तो मुझे भी ऐसा ही, रानी । पर अब तक जो उदन्त उसके उपसर्गों हमने सुने हैं, उसके बाद अब जगत का कौनसा शूल महावीर की प्राणहानि कर सकता है ? ' 'जानती हूँ, उसे मारने वाली सत्ता पृथ्वी पर नहीं जन्मी । पर जो पीड़न उसने अब तक झेले हैं, उसके आगे का कोई और पीड़न भी तो हो सकता है ? ' ' चण्डकौशिक के दंश क्या कम थे ? शलपाणि यक्ष के दानवीय पंजों से कौन जीता निकल सकता था ? और संगम देव ने कौन-सा तास उसे नहीं दिया ? उसकी शिराओं में खून नहीं, बिच्छू बहे । उसकी अंतड़ियों में प्रलय के समुद्र धँसे । व्याघ्रों और मदोन्मत्त हाथियों ने उसे रौंदा, उसके एक-एक अवयव को फाड़ दिया । फिर भी उसकी सुकुमार काया के जख्म ही नये कमलों की तरह खिल कर, उसके शरीर को और भी तरुण और तरोताजा बना गये। हर पीड़न और प्रहार उसके शरीर को अधिक अखण्ड, अधिक अघात्य बनाता चला गया । 'सो तो अपनी गोदी के गहरावों में ज्यों का त्यों सहा, और प्रत्यक्ष अनुभव किया है । उसके साथ ही जैसे मृत्यु के जबड़ों में गई हूँ, और उसकी अमृत लेकर लौटी अंजुलि ने हर बार मुझे मानो नया अमृत-सा पिलाया है । पर यह घटना उसके आगे की लगती है । कारण 'क्या कारण ?' 'वे सारे उपसर्ग देवी माया थे । उसे आक्रान्त और भयभीत करके भी उसकी देह के ठोस पुद्गल को नहीं भेद सके थे । पर आज पहली बार लगा कि, ठोस पुद्गल मनुष्य के टोस पुद्गल शूल ने, मेरे बेटे के मानवीय रक्त-मांस को विदार दिया है। ' और और वह चीख उठा है ! ' 'लेकिन, तृशा, क्या लाढ़ और वज्रभूमि के मानुष-भक्षी म्लेच्छों ने उस पर खूखार कुत्ते नहीं छोड़े ? क्या उन कुत्तों ने उसकी पिंडलियों और जांघों के ठोस मांस नहीं काट गिराये ? क्या आर्यों के मधुर रक्त-मांस के भूखे-प्यासे उन बर्बरों ने उसकी ठोस बोटियाँ चबा-चबा कर अपनी चिर काल की आर्त ईर्ष्या और तृष्णा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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