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सोचा था, नहीं जाऊँगी संथागार में। नहीं सुनना मुझे तुम्हारा अभि. भाषण । क्या नया सुनना है उसमें चन्दना को? उसके अणु-अणु में निरन्तर ही तो बोल रहे हो। प्रतिपल तुम्हारी अजस्र सरस्वती की निपट-निरीह श्रोता ही तो हो कर रह गई हूँ। तुम्हें सुनते ही चले जाने की तरस और प्यास का अन्त नहीं रहा। · · तो तुम चुप कैसे रह सकते थे। मेरे एकान्त का आकाश तुम्हारे सदेह शब्दों से आकुल होकर मुझे छाये रहता। और एक बार देख लेने पर जो रूप मेरी पुतली बन कर रह गया, उसे अलग से और क्या देखना था। बरौनियों के गवाक्ष-रेलिंग पर खड़ा, वह कौन सदा झाँक रहा है ? · · 'पलकों के कपाट मूंदते ही, अन्तर-कक्ष की कमल-सेज पर अकेली तो कभी न रही। . . .
- फिर भी कुछ ऐसा लगा, कि छाती का एक टुकड़ा कट कर सामने आ खड़ा हुआ है। उसकी ऊष्मा को सहे बिना, और उसकी धमनी को मुने बिना चैन नहीं। · · 'संथागार में तुम बोले। श्रवण और दर्शन से परे, मेरी देह मात्र किसी की आग्नेय वाणी हो कर रह गयी। · · 'अन्तिमेतम् दिया तुमने, कि तुम वैशाली छोड़ कर चले जाओगे : तुम हमारे ऊष्मा भरे रस-रंग भरे, संसार की सीमाओं से निष्क्रान्त हो जाओगे। तुम इन अप्सराकूजित रंगमहलों से मुंह मोड़ जाओगे। अनागार हो कर वीरानों में विचरोगे। ___तुम्हारे षड्यंत्र और चक्रव्यूह को खूब समझ रही थी । सो उसकी धुरी बन कर प्रस्तुत हो गयी थी। · · लेकिन तुम सचमुच ही चले जाओगे, यह तो कल्पना भी न कर सकी थी। · · पर, एक दिन अचानक सुनाई पड़ा : 'वर्द्धमान गृह-त्याग कर गये।' · · 'एक ठोकर सीधी आ कर मेरी छाती पर लगी थी। मानो वह चुनौती वैशाली और लोक के प्रति न हो कर, सीधी मेरे ललाट के तिलक पर आ कर टकराई थी। बेशक · · क्यों अनिवार्य हो कि मुझे पूछ कर जाओ तुम ? मैं होती ही कौन हूँ ? अनन्तों का सम्राट किसी की अनुमति लेकर नहीं चलता ! ____ संथागार से महालय लौटने को मन मुकर गया। वैशाली के सूर्य ने जिन महलों के ऐश्वर्य में आग लगा दी, उनमें लौट कर क्या करूँगी।
और फिर यह भी जानती थी, कि तुम घर आओगे, सब आत्मीय परिजनों से मिलने। तब सामने न आऊँ, यह कैसे हो सकता है। · · 'मेरे बुलाये तो तुम आये नहीं, फिर सामने आने की विवशता मेरी क्यों रहे? · · 'नहीं, मुझ नहीं मिलना है तुमसे। मेरी ग़रज़ की पुकार जब होगी तब देखा जायेगा। तुम्हारे भीतर तो ऐसी कोई पुकार नहीं, कि तुम्हें केवल मेरे पास आना पड़े, या मैं तुम्हारे पास आने को फिर विवश हो जाऊँ। तुम्हें मुझ से कुछ पूछना नहीं है, कहना-सुनना नहीं है, तो मुझे भी तुम से क्या पूछना
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