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मुण्डमालाओं से शोभित, सहस्राक्ष, सहस्रपाद, सहस्रभुजा, नाना शस्त्रास्त्रों, से सज्जित वे भयंकारी, दिगम्बरी, प्रलंयकरी महाताण्डव करने लगीं । लोक-हृदय में शवीभूत हो गये शिव की छाती पर पैर धर कर, वे अपनी तमाम शोषित, पीड़ित, आर्त, वस्त, आक्रन्द करती कोटि-कोटि भूखी-नंगी मानव-सन्तानों के परित्राण के लिये, दिगन्तव्यापी असुरों, पीड़कों, शोषकों आततायियों पर भयंकर विस्फोटकारी आग्नेय अस्त्रों की वर्षा करने लगीं।
'बाहिमां मां, वाहिमां माँ' पुकारते, भयार्त क्रन्दन करते ऋत्विकों, याजनिकों और शत-सहस्र प्रजाजनों को दिखायी पड़ा :
..चण्डप्रद्योत का रत्निम राज-सिंहासन सत्यानाश की ज्वालाओं से घिर कर नीचे धसक रहा है। और उसके साथ ही, उसके आसपास जाने कितने ही सत्तासिंहासन आग के समुद्र में ऊभ-चूभ होते दिखाई पड़ रहे हैं । चण्डप्रद्योत और महारांनी शिवादेवी सिंहासन से लढक कर, बलि-चट्टान के पादप्रान्त में आ पड़े हैं । वे आर्त स्वर में अविराम पुकार रहे हैं : · · · त्राहिमां मां, त्राहिमां माँ ! ... ___ हठात् प्रलय, विनाश और वह्नि-मंडलों की वह रुद्रलीला जाने कहां विलीन हो गई। चरम-परम नग्ना सर्वसंहारिणी महाकाली, सर्व मनमोहिनी ललिता भुवनेश्वरी के कोमल रूप में मुस्कुराती दिखाई पड़ीं। उन परात्परा दिगम्बरी के लावण्य सिंधु से ज्वारित नीलोत्पल वक्षदेश पर वह दिगम्बर बलि-पुरुष निर्दोष शिशु की तरह उत्संगित है। अपनी सर्वकामिनी बाहुओं से मां ने अपने उस आत्मजात बेटे को अभिन्न भाव से आलिंगन में बाँध लिया है। • 'प्रकृति ने अपनी कोख से इस बलि-मुहूर्त में, अपने अपूर्व नूतन विश्व-सृजन के लिये, एक ऐसे पुरुष को जन्म दिया है, जो अद्यावधि पुराण, इतिहास और कालचक्र में अतुल्य है, अप्रतिम है। • • . अनिमेष नयन सबको दिखाई पड़ा : पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्रोदय की तरह मां के उस हेमाभ मुखमण्डल से अमृत-कलाएँ बरसने लगीं । विराट् में खिले एकाकी कुमुद की पंखुरियों जैसे उनके मुस्कुराते ओंठ स्पन्दित हुए । गगनमण्डल के गहन अथाह में से अतिशय मार्दवी वाणी सुनायी पड़ी : ___मैं प्रीत हुई, मैं परितृप्त हुई । मेरा चिर प्रतीक्षित पुरुषोत्तम आ गया, मेरा परित्राता आ गया । · · अब तक जो भी बलिपुरुष मेरी बलिवेदी पर आये, वे स्वार्थियों के बलात्कार के आखेट हो कर आये । वह आत्मलिप्सु शोषकों का यज्ञ था, मेरा नहीं । उससे सर्वभक्षी बलात्कार की पाशवी शक्तियाँ जन्मीं और आज आर्यावर्त सर्वनाश के आसुरी जबड़े में आ पड़ा है । . .
'. . 'अरे सुनो, प्रथम बार आज आये हैं पुरुषोत्तम पशुपतिनाथ ।' प्रथम बार आत्माहुति देने आये हैं, स्वयम् यज्ञपुरुष। आत्महोता वेदपुरुष, पूषन् । : .. ___ 'मैं प्रीत हुई, मैं परितुष्ट हुई । असुर-निर्दलित मेरी कोटि-कोटि सन्तानों के परित्राता, मुक्तिदाता आ गये । - आ गये मेरे महाकाल पुरुष, मानव-तनधारी हो कर आ गये।
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