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मन्दिर के प्रांगण में नर-बलि का वार्षिक उत्सव बड़े समारोह से मनाया जा रहा है। आर्यावर्त के श्रावक श्रेष्ठ वैशालीपति चेटकराज की पुत्री महारानी शिवादेवी की राजनगरी उज्जयिनी में नर-बलि का महोत्सव हो रहा है। वर्तमान की मौसी शिवादेवी।· · 'बलि के लिये उपयुक्त सर्वलक्षण-सम्पन्न पुरुष अभी उपलब्ध नहीं हो सका है। महाप्रतापी अवन्तीनाथ चण्डप्रद्योत के अश्वारोही उसकी खोज में दिशाएँ खूद रहे हैं।
· · आश्वस्त होओ शिवा, चण्डप्रद्योत, वह बलि पुरुष स्वयम् ही तुम्हारे महाराज्य की देहरी पर आ उपस्थित हुआ है। देखो, वह तुम्हारे विन्ध्याचल की इस चूड़ा पर खड़ा है।
.. 'दिन डूबने की बेला में क्षिप्रा के एक सुनसान तट पर आ कर मेरे पैर आपोआप रुक गये। चारों ओर निगाह उठा कर देखा : यह स्मशान भूमि है, उज्जयिनी का अतिमुस्तक नामा स्मशान-घाट। · · 'घिरते प्रदोष की बेला में कोई एकाकी चिता जल रही है। मृतक के परिजन उसके चितालीन शव का परित्याग करके अभी-अभी जा चुके हैं। केवल नीलीसिन्दूरी ज्वालाएँ उसकी एकमात्र साथी हैं । कहीं बहुत दूर अलक्ष्य में एक कुत्ते ने भूक कर मेरा स्वागत किया है। · · उस परित्यक्त उदास सन्नाटे के मर्म का वही एकमात्र संगीत है। चिता में चिटखती हड्डियाँ
और चर्बी उसके अन्तरे हैं : आन्तरिक स्वरग्राम । · · ·और यह संगीत भी जिस तट में अवसान पा गया है, नीरवता के उस छोर पर मैं अनायास ही ध्यानस्थ हो गया हूँ।
.. क्षिप्रा की चिरकाल से अविराम प्रवाहित धारा एकाएक रुक गई। उसने मुड़ कर देखा। उसकी विकल रागिनी मेरे भीतर आ कर स्तब्ध हो गई है। नदी ने मुझे पहचाना। उसकी और मेरी निगाहें मिलीं। और उसी क्षण एक तीसरी निगाह हमारे बीच खुल उठी।' · · त्रिलोचन महाकाल, और कोई नहीं, मैं ही आया हूँ : तुम्हारा वितीय नयन !' महेश्वर प्रीत हो कर मुस्कुरा आये। उनके लीला-नाट्य की इस अन्तिम भूमिका का अतिथि और कौन हो सकता है ? . . .
रात गहराती जा रही है। शेष चिता की भस्म में ढंका एकाकी अंगारा रह-रह कर दहक उठता है। वह एकमात्र आँख, जो चिर जागृत है, जो यहां की एकमात्र उपस्थिति है । जो मेरी अकेली संगी और साक्षी है। पीपल अन्तिम बार मर्मरा कर अभी-अभी खामोश हो गया है। अब हवा तक स्तब्ध हो गई है। और इस अफाट सन्नाटे में केवल भय-भैरव की नग्न पदचाप स्पष्ट सुनी और देखी जा सकती है ।
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